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भारत में आपातकाल: 50 साल पहले का काला अध्याय

1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा ने लोकतंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित किया। इंदिरा गांधी की सरकार ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन किया और राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया। यह घटना आज भी भारतीय राजनीति में एक काले अध्याय के रूप में जानी जाती है। जानें इस आपातकाल के पीछे के कारण और इसके प्रभावों के बारे में।
 

भारत में आपातकाल की कहानी

भारत में आपातकाल: आज से 50 वर्ष पूर्व, 25 जून 1975 की रात को भारतीय लोकतंत्र पर एक गंभीर धब्बा लगा था। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने अचानक देशभर में आपातकाल की घोषणा की। इस निर्णय के परिणामस्वरूप नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लागू की गई, राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया और हर किसी की आवाज को दबा दिया गया।


हालांकि, यह भारत में आपातकाल का पहला अवसर नहीं था। इससे पहले भी 1962 और 1971 में आपातकाल लगाया गया था, लेकिन उन मामलों में ठोस कारण थे, जैसे युद्ध या बाहरी आक्रमण। लेकिन 1975 में जो हुआ, वह सत्ता को बनाए रखने की कोशिश अधिक प्रतीत होता है। आइए जानते हैं कि आपातकाल कब-कब लागू हुआ और इसके पीछे के कारण क्या थे। 


1962 की पहली आपातकाल

26 अक्टूबर 1962 को चीन के साथ युद्ध की स्थिति में पहली बार आपातकाल लागू किया गया। उस समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे और इसे बाहरी खतरे के कारण लागू किया गया था। यह आपातकाल 1968 तक जारी रहा।


1971 की दूसरी आपातकाल

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के साथ युद्ध के चलते दूसरी बार आपातकाल लगाया गया। यह युद्ध बांग्लादेश की स्वतंत्रता से संबंधित था और देश की सुरक्षा को खतरा था। उस समय वीवी गिरी राष्ट्रपति थे। 


1975 की तीसरी आपातकाल

25 जून 1975 की रात इंदिरा गांधी की सरकार ने अचानक 'आंतरिक अस्थिरता' का हवाला देकर आपातकाल लागू किया। असली कारण एक न्यायालय का निर्णय था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया था और उन्हें 6 वर्षों तक चुनाव लड़ने से रोक दिया था। इसके बाद उनके इस्तीफे की मांग और देशभर में विरोध शुरू हो गया।


इंदिरा गांधी ने खुद को बचाने और सत्ता में बने रहने के लिए राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करवाई। यह आपातकाल कुल 21 महीने तक चला, यानी 21 मार्च 1977 तक।


तानाशाही का थोपना

आपातकाल के दौरान संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए। समाचार पत्रों की स्वतंत्रता को खत्म कर दिया गया। हर खबर को सरकार की अनुमति से प्रकाशित किया जाता था। राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया, जिनमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, और लालकृष्ण आडवाणी जैसे प्रमुख नेता शामिल थे।


आज भी उठते हैं सवाल

1975 का आपातकाल आज भी भारतीय लोकतंत्र के सबसे काले अध्यायों में से एक माना जाता है। इसे इंदिरा गांधी की तानाशाही प्रवृत्ति और सत्ता की लालसा का प्रतीक माना जाता है। राजनीतिक दल आज भी कांग्रेस और इंदिरा गांधी को इस निर्णय के लिए आलोचना करते हैं। यह एक ऐसा समय था जब भारत में लोकतंत्र को जबरन बंद कमरे में कैद कर दिया गया था.