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भारत में गूगल का 15 बिलियन डॉलर का एआई निवेश: नई तकनीक में अमेरिका की योजना

गूगल ने भारत में 15 बिलियन डॉलर का एआई हब स्थापित करने की योजना बनाई है, जिसमें विशाखापत्तनम में एक डेटा सेंटर शामिल है। यह अमेरिका की तकनीकी रणनीति का हिस्सा है, जो पश्चिम एशियाई देशों के ऊर्जा और वित्तीय संसाधनों को भारतीय मानव संसाधनों के साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है। इस निवेश से भारत में विदेशी मुद्रा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, लेकिन यह भी चिंता का विषय है कि इससे भारत की अपनी तकनीकी आवश्यकताओं को विकसित करने की संभावनाएं सीमित हो सकती हैं।
 

गूगल का एआई हब और अमेरिका की रणनीति

अमेरिका ने पेट्रोडॉलर से समृद्ध पश्चिम एशियाई देशों के ऊर्जा और वित्तीय संसाधनों को भारत के तकनीकी प्रशिक्षित मानव संसाधनों के साथ जोड़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में अपनी स्थिति मजबूत करने की योजना बनाई है।


गूगल भारत में एआई हब स्थापित करने के लिए 15 बिलियन डॉलर का निवेश करने जा रहा है। इस योजना के तहत विशाखापत्तनम में एक गिगावाट का डेटा सेंटर बनाया जाएगा। यह अमेरिका के बाहर एआई डेटा सेंटर बनाने की गूगल की रणनीति का हिस्सा है। इससे पहले, माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन ने भी भारत में डेटा सेंटर स्थापित करने की घोषणा की थी, लेकिन उनके निवेश का स्तर गूगल के मुकाबले काफी कम है।


अमेरिका की प्रमुख तकनीकी कंपनियों के बीच एआई में निवेश की होड़ मची हुई है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने खाड़ी देशों की यात्रा के दौरान इस परियोजना की घोषणा की थी, जिसमें उन्होंने पेट्रोडॉलर समृद्ध देशों के ऊर्जा और वित्तीय संसाधनों को भारतीय मानव संसाधनों के साथ जोड़ने की बात की थी।


डेटा की विशाल मात्रा की आवश्यकता के कारण, डेटा सेंटर स्थापित करना महंगा और ऊर्जा-गहन कार्य है, जिसमें शीतलन के लिए शुद्ध जल की भी आवश्यकता होती है। इससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, अमेरिका ने अपने प्रभाव क्षेत्र के देशों की ऊर्जा उत्पादन क्षमता, जल उपलब्धता और मानव संसाधनों को अपनी परियोजना में शामिल करने का निर्णय लिया है।


विशाखापत्तनम में बनने वाले इस हब में अडानी ग्रुप और भारतीय एयरटेल का भी निवेश होगा। इस बड़े निवेश से भारत में विदेशी मुद्रा आएगी और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।


हालांकि, यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि इस प्रकार की परियोजनाएं भारत को अमेरिकी उच्च तकनीक मानकों से और अधिक जोड़ रही हैं। इससे भारत की अपनी आवश्यकताओं के अनुसार तकनीकी मानकों को विकसित करने की संभावनाएं सीमित हो रही हैं। चूंकि अमेरिकी एआई उद्योग सेवा क्षेत्र पर केंद्रित है, इसलिए भारत की मैन्युफैक्चरिंग और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार एआई तकनीक विकसित करने की संभावनाएं कम हो जाएंगी। इसके परिणामस्वरूप, सेवा क्षेत्र में एआई का उपयोग बढ़ेगा, जिससे मौजूदा नौकरियों पर और अधिक खतरा मंडराएगा।