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मद्रास हाईकोर्ट ने राहुल गांधी के मतदाता सूची आरोपों की याचिका खारिज की

मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मतदाता सूची में हेरफेर के आरोपों पर निर्वाचन आयोग से स्पष्टीकरण मांगा गया था। अदालत ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मामला पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है और याचिका में ठोस सबूतों का अभाव है। राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि निर्वाचन आयोग भाजपा के साथ मिलकर चुनावों में धांधली कर रहा है, जिसे आयोग ने खारिज कर दिया।
 

जनहित याचिका पर हाईकोर्ट का निर्णय

मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा मतदाता सूची में हेरफेर के आरोपों पर निर्वाचन आयोग से स्पष्टीकरण मांगा गया था। अदालत ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।


शिवकुमार द्वारा दायर याचिका का विवरण

यह याचिका अधिवक्ता वी. वेंकट शिवकुमार ने दायर की थी। इसमें चुनाव आयोग से अनुरोध किया गया था कि वह सभी निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूचियों को मशीन-पठनीय प्रारूप में अदालत के समक्ष प्रस्तुत करे और उन्हें सार्वजनिक करे। याचिका में आयोग को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह अब तक की गई जांच, ऑडिट और उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करे।


कोर्ट की टिप्पणियाँ

मुख्य न्यायाधीश एम. एम. श्रीवास्तव और जस्टिस जी. अरुल मुरुगन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि मतदाता सूची से संबंधित मामला पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। ऐसे में हाईकोर्ट में इस तरह की याचिका का कोई औचित्य नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि यह याचिका केवल प्रचार के उद्देश्य से दायर की गई प्रतीत होती है, जिसमें ठोस सबूतों का अभाव है और यह केवल राजनीतिक आरोपों पर आधारित है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इसमें स्पष्ट विवरण की कमी है और आयोग को इस आधार पर जवाब देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।


राहुल गांधी के आरोप

अगस्त में, राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया था कि निर्वाचन आयोग केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा के साथ मिलकर चुनावों में धांधली कर रहा है। उनका कहना था कि लोकसभा चुनावों से लेकर कई राज्यों के विधानसभा चुनावों तक मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गई। हालांकि, चुनाव आयोग ने इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।


कोर्ट का संदेश

हाईकोर्ट के इस निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि बिना पर्याप्त सबूतों के लगाए गए राजनीतिक आरोप अदालत में टिक नहीं सकते। साथ ही, न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि इस तरह की याचिकाएं न केवल अदालत का समय बर्बाद करती हैं बल्कि अनावश्यक रूप से चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की साख पर भी सवाल खड़ा करती हैं।