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मध्य प्रदेश में बुजुर्गों के खिलाफ बढ़ता साइबर फ्रॉड

मध्य प्रदेश में बुजुर्गों के खिलाफ साइबर ठगी के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। ठग खुद को सरकारी अधिकारियों के रूप में पेश कर बुजुर्गों को डराते हैं और उनकी बचत लूट लेते हैं। हाल के मामलों में करोड़ों रुपये की ठगी की गई है। पुलिस और साइकियाट्रिस्ट ने बुजुर्गों को सतर्क रहने की सलाह दी है। जानें इस बढ़ते खतरे के बारे में और क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
 

भोपाल में बुजुर्गों को निशाना बनाते साइबर ठग


भोपाल: मध्य प्रदेश में डिजिटल धोखाधड़ी के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिसमें अब पेंशनभोगी बुजुर्गों को लक्ष्य बनाया जा रहा है। यह नया प्रकार का साइबर फ्रॉड केवल आर्थिक अपराध नहीं है, बल्कि यह एक मनोवैज्ञानिक हमला भी माना जा रहा है। ठग खुद को सीबीआई, एटीएस, पुलिस और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के रूप में पेश कर बुजुर्गों को डराते हैं और उनकी बचत लूट लेते हैं। हाल के महीनों में कई चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं, जिनमें बुजुर्गों से करोड़ों रुपये ठगे गए हैं।


जबलपुर में एक 72 वर्षीय बुजुर्ग से ठगों ने 76 लाख रुपये ठग लिए। उन्हें फर्जी राष्ट्रीय सुरक्षा मामले में फंसाने की धमकी देकर लगातार वीडियो कॉल पर रखा गया। इसी तरह, एक अन्य 72 वर्षीय बुजुर्ग से एटीएस पुणे का अधिकारी बनकर 21.5 लाख रुपये ऐंठ लिए गए। भोपाल में एक 71 वर्षीय रिटायर्ड बीएचईएल सुपरवाइजर को 70 दिनों तक डिजिटल रूप से बंधक बना कर 68.3 लाख रुपये ले लिए गए।


कौन-कौन से लोग हुए ठगी का शिकार?

एक 55 वर्षीय रिटायर्ड नेवी कमांडर से भी 68.49 लाख रुपये ठगे गए, जिसमें नकली आरबीआई नोटिस और स्काइप पर बनाई गई फर्जी सुनवाई शामिल थी। सबसे हालिया मामला 85 वर्षीय रिटायर्ड मिलिट्री इंजीनियर का है, जिन्होंने एक हफ्ते तक यह समझा कि वे सुप्रीम कोर्ट की ऑनलाइन सुनवाई में भाग ले रहे हैं। नकली जजों और ईडी अधिकारियों के आदेशों पर उन्होंने दिल्ली और डिब्रूगढ़ के खातों में 36 लाख रुपये भेज दिए।


पुलिस की प्रतिक्रिया

पुलिस का कहना है कि इन सभी पीड़ितों में कुछ समानताएँ हैं। ये सभी बुजुर्ग हैं, अकेले रहते हैं और डिजिटल सिस्टम की जानकारी कम रखते हैं। इसके अलावा, ठग ऐसे लोगों को निशाना बनाते हैं जो साल के अंत में लाइफ सर्टिफिकेट जमा करने के समय सरकारी प्रक्रियाओं से जुड़े रहते हैं।


साइकियाट्रिस्ट की राय

कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि डिजिटल गिरफ्तारी वास्तव में मानसिक गिरफ्तारी है। बुजुर्ग तकनीक में कमजोर होते हैं और डर के कारण ठगों के निर्देशों पर निर्भर हो जाते हैं। परिवार का साथ न मिलना और मजाक का डर उन्हें और असुरक्षित बना देता है।


बढ़ते मामलों को देखते हुए एमपी साइबर क्राइम यूनिट ने सलाह जारी की है। पेंशनभोगियों से कहा गया है कि वे परिवार के संपर्क में रहें, किसी भी अधिकारी जैसे दिखने वाले कॉल पर तुरंत सवाल उठाएं और किसी भी स्थिति में डराकर मांगे गए पैसे ट्रांसफर न करें।