महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य बनाने का विवाद: कांग्रेस और शिवसेना की प्रतिक्रिया
महाराष्ट्र में हिंदी भाषा का विवाद
महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा कक्षा एक से हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाने के निर्णय ने राजनीतिक और सामाजिक हलचल पैदा कर दी है। कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़ ने इस कदम को मराठी विरोधी बताते हुए आरोप लगाया है कि सरकार हिंदी को थोपने के लिए गलत प्रचार कर रही है।गायकवाड़ ने स्पष्ट किया कि उनका विरोध हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं है, बल्कि वे मराठी पर हिंदी को थोपने का विरोध कर रही हैं। उन्होंने इसे "मराठी संस्कृति के खिलाफ" करार दिया और इस फैसले के बारे में फैलाई जा रही गलत सूचनाओं पर आपत्ति जताई।
यह विवाद तब और बढ़ गया जब सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने का आदेश दिया। हालांकि, यदि किसी स्कूल में 20 से अधिक छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा को सीखना चाहते हैं, तो वे हिंदी पढ़ने से मना कर सकते हैं। इस स्थिति में या तो शिक्षक नियुक्त किया जाएगा या ऑनलाइन माध्यम से दूसरी भाषा पढ़ाई जाएगी।
शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी इस मुद्दे पर अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सक्रिय होने का निर्देश दिया है। उन्होंने विधानसभा के मानसून सत्र से पहले स्कूलों में विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया है।
महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री उदय सामंत ने हाल ही में कहा कि कक्षा 1 से हिंदी को अनिवार्य करने की नीति पूर्व सरकार के कार्यकाल में स्वीकृत की गई थी। लेकिन गायकवाड़ ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि पूर्व सरकार ने त्रिभाषा फार्मूले को अपनाया था, जिसमें हिंदी को थोपने का कोई प्रावधान नहीं था।
गायकवाड़ ने कहा, “महाराष्ट्र भाजपा के हिंदी एजेंडे के खिलाफ एकजुट हो रहा है, लेकिन सरकार जानबूझकर गलत जानकारी फैला रही है ताकि जनता का विरोध कमजोर हो सके।” इस मुद्दे पर बढ़ते विवाद के बीच, महाराष्ट्र में भाषा नीति और सांस्कृतिक पहचान के सवाल फिर से चर्चा में आ गए हैं। आगामी विधानसभा सत्र में इस बहस के चलते राजनीतिक हलचल और तेज होने की संभावना है।