मानसून की तबाही: क्या जलवायु परिवर्तन है असली कारण?
राष्ट्रीय समाचार: मानसून का कहर
राष्ट्रीय समाचार: मानसून आमतौर पर खुशियों का संदेश लाता है, लेकिन इस बार उसने दहशत का माहौल बना दिया है। पंजाब, दिल्ली और उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। नदियां उफान पर हैं और पहाड़ों से लेकर मैदानों तक तबाही के दृश्य देखने को मिल रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पहली बार है जब बादल हिमालय को पार कर तिब्बत तक पहुंच गए हैं, जो मौसम के पुराने रिकॉर्ड को तोड़ रहा है और लोगों में चिंता का माहौल बना रहा है।
बादल हिमालय पार कर गए
आमतौर पर मानसूनी बादल 2000 मीटर की ऊंचाई से ऊपर नहीं जाते, जिससे तिब्बत का क्षेत्र सूखा और ठंडा रहता है। लेकिन इस बार बादल हिमालय की ऊंचाइयों को पार कर तिब्बत तक पहुंच गए हैं, जहां भारी बारिश और बर्फबारी हो रही है। वैज्ञानिक इसे एक असाधारण घटना मानते हैं। मौसम विभाग के अनुसार, पिछले 80 वर्षों के पैटर्न में बदलाव आया है और पहाड़ी क्षेत्रों में अभूतपूर्व खतरा उत्पन्न हो गया है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन इस तबाही का मुख्य कारण है। पश्चिमी विक्षोभ और मानसून के टकराने से हालात बिगड़ गए हैं। जम्मू-कश्मीर के जांस्कर क्षेत्र में अगस्त के अंत में रिकॉर्ड बारिश और बर्फबारी हुई, जिसमें आधा फीट से अधिक बर्फ गिरी और सौ मिलीमीटर से ज्यादा बारिश दर्ज की गई। बादलों की ऊंचाई में वृद्धि के कारण बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है।
ग्लेशियर झीलों की बढ़ती समस्या
केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 400 से अधिक ग्लेशियर झीलें तेजी से फैल रही हैं, जो कभी भी टूट सकती हैं और तबाही मचा सकती हैं। रिपोर्ट में इनकी निगरानी और प्रबंधन की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। यदि समय पर ध्यान नहीं दिया गया, तो पहाड़ी राज्यों में जल प्रलय और भी गंभीर हो सकता है। यह चेतावनी सरकार और जनता दोनों के लिए चिंता का विषय है।
ठंड में गर्मी का एहसास
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने बताया है कि सितंबर में ला नीना की वापसी हो सकती है। आमतौर पर यह ठंडक लाता है, लेकिन इस बार स्थिति अलग है। वैश्विक तापमान औसत से ऊपर रहने की संभावना है, जिसका मतलब है कि आने वाली ठंड भी गर्मी का एहसास कराएगी। यह जलवायु परिवर्तन की गंभीरता और इसके मानव जीवन पर प्रभाव को उजागर करता है।
पहाड़ी राज्यों में तबाही
उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के कई क्षेत्र बाढ़ और भूस्खलन से प्रभावित हैं। गांव खाली हो रहे हैं, सड़कें बह गई हैं और पुल टूट गए हैं। हजारों लोग राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हैं। किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं और पशुधन को भी भारी नुकसान हुआ है। यह स्थिति दर्शाती है कि जलवायु संकट अब केवल दरवाजे पर नहीं, बल्कि हमारे घरों के भीतर घुस चुका है।
इंसानियत का इम्तिहान
इस आपदा ने इंसानियत का भी इम्तिहान लिया है। कई स्थानों पर गुरुद्वारों और मस्जिदों में लंगर चलाए जा रहे हैं। समाज सेवा संगठन राहत सामग्री वितरित कर रहे हैं। सरकार ने सेना और एनडीआरएफ को तैनात किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ गंभीर कदम उठाएंगे या हर साल इस तरह की तबाही को किस्मत मानकर सहते रहेंगे?