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राजस्थान के अस्पताल में अंधविश्वास का बढ़ता प्रभाव

राजस्थान के बूंदी जिले के नैनवां उप जिला अस्पताल में अंधविश्वास का एक नया मामला सामने आया है, जहां इलाज के बजाय टोना-टोटका किया जा रहा है। परिजनों ने मृतक की आत्मा को शांति दिलाने के लिए अस्पताल में तंत्र-मंत्र का सहारा लिया। यह घटना न केवल चिकित्सा प्रणाली पर सवाल उठाती है, बल्कि समाज में अंधविश्वास के बढ़ते प्रभाव को भी दर्शाती है। क्या प्रशासन इस पर ध्यान देगा?
 

अंधविश्वास का अड्डा या इलाज का मंदिर?

राजस्थान के बूंदी जिले के नैनवां उप जिला अस्पताल में एक गंभीर सवाल उठ रहा है: क्या यह अस्पताल इलाज का केंद्र है या अंधविश्वास का स्थान? जब इलाज के बजाय झाड़-फूंक और टोने-टोटके का सहारा लिया जाने लगे, तो आम जनता की स्थिति क्या होगी? हाल ही में, कुछ लोग अस्पताल में एक आत्मा को ले जाने के लिए लेबर रूम तक पहुंचे, और इसके बाद जो हुआ, उसने मानवता को शर्मसार कर दिया।


टोना-टोटका का मामला

अस्पताल में मृतक की आत्मा को ले जाने के लिए टोना-टोटका किया जा रहा है। यह मामला किसी एक या दो साल पहले मरे हुए व्यक्ति का नहीं है, बल्कि 14 और 17 साल पहले की मौतों से जुड़ा है।


मंत्रों का उच्चारण

14 और 17 साल पहले मरे व्यक्तियों के परिजनों को एक तांत्रिक ने बताया कि उनकी आत्माएं अब तक भटक रही हैं, जिससे परिवार में सुख और शांति नहीं है। इसके बाद, ये लोग अस्पताल के लेबर रूम में गए और नवजात बच्चे के वजन मापने वाली मशीन पर पूजा करने लगे। जहां शांति होनी चाहिए थी, वहां मंत्रों का उच्चारण और जय घोष गूंजने लगा।


तंत्र-मंत्र का प्रयोग

2010 में एक व्यक्ति अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। अब, 14 साल बाद, उसके परिवार ने उसकी आत्मा को शांति दिलाने के लिए अस्पताल के गेट पर तंत्र-मंत्र किया। एक अन्य मामले में, 17 साल पहले लेबर रूम में मृत शिशु की आत्मा को ले जाने के लिए परिवार ने सीधे लेबर रूम में प्रवेश किया और टोना-टोटका किया। जब अस्पताल में इस तरह की गतिविधियाँ होने लगीं, तो बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई। यह देखकर सभी हैरान थे कि इलाज का केंद्र अंधविश्वास का अखाड़ा बन गया है। यह पहला मामला नहीं है; हाल ही में बूंदी जिला अस्पताल में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था। सवाल यह है कि जब अस्पताल विज्ञान और इलाज का केंद्र है, तो अंधविश्वास को कब तक सहन किया जाएगा? प्रशासन कब तक मूकदर्शक बना रहेगा?