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लखनऊ में मोहर्रम के जुलूस में गंगा-जमुनी तहजीब का अद्भुत नजारा

लखनऊ में मोहर्रम के जुलूस में गंगा-जमुनी तहजीब की अद्भुत झलक देखने को मिली। इस अवसर पर स्वामी सारंग ने मातम किया और शांति का संदेश दिया। हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग एक साथ मिलकर इस जुलूस में शामिल हुए, जो एकता और भाईचारे का प्रतीक है। स्वामी सारंग ने कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और बताया कि कैसे विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ शांति से रह सकते हैं। यह घटना न केवल धार्मिक एकता का प्रतीक है, बल्कि मानवता के लिए एक प्रेरणा भी है।
 

मोहर्रम के जुलूस में एकता की मिसाल

मोहर्रम का वायरल वीडियो: लखनऊ में मोहर्रम के अवसर पर आयोजित जुलूस में गंगा-जमुनी तहजीब की झलक देखने को मिली। यौम-ए-आशूरा के मौके पर पुराने लखनऊ में यह जुलूस निकाला गया, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग शामिल हुए। स्वामी सारंग भगवा वस्त्र पहने और माथे पर तिलक लगाए हुए गम में डूबे नजर आए, साथ ही उन्होंने 'या अली' और 'या हुसैन' के नारे लगाए। इस अवसर पर उन्होंने कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी। मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे। स्वामी सारंग पिछले एक दशक से मोहर्रम के जुलूस में भाग ले रहे हैं।


स्वामी सारंग का मातम

स्वामी सारंग का मातम

मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, और इसकी 10वीं तारीख मुसलमानों के लिए विशेष महत्व रखती है। इसे आशूरा के रूप में मनाया जाता है, जब इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद किया जाता है। इस दिन स्वामी सारंग ने नौहाखानी और सीनाजनी कर कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब का यह दृश्य अद्भुत था। स्वामी सारंग ने मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद के साथ मिलकर मातम किया। स्वामी सारंग भगवा वस्त्र पहने हुए थे, माथे पर तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला थी। उन्होंने खूनी जंग पर मातम कर अपना दुख भी व्यक्त किया।


स्वामी सारंग का संदेश

स्वामी सारंग ने क्या कहा?

स्वामी सारंग ने कर्बला के संदेश को याद करते हुए बताया कि आशूरा के दिन इराक के कर्बला में हजरत रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत हुई थी। तब से दुनिया भर के मुसलमान और अन्य समुदाय के लोग कर्बला में शहीद हुए लोगों की याद में ताजियादारी, लंगर और जुलूस निकालते हैं। स्वामी सारंग ने कहा, “कर्बला एक वैश्विक संदेश है। इसका संदेश इमाम हुसैन ने अपनी शहादत के जरिए दिया है, जिसे पूरी दुनिया अमन के रूप में स्वीकार करती है।”


स्वामी सारंग का मातम

स्वामी सारंग ने किया मातम

स्वामी सारंग ने गम में अपनी पीठ पर तलवार और जंजीर बांधी। ये चाकू जंजीरों में बंधे थे, जिनका उपयोग मातम के दौरान किया जाता है। स्वामी सारंग पिछले 10 वर्षों से शांति का संदेश देने के लिए मोहर्रम के जुलूस में भाग ले रहे हैं। वह प्रयागराज के निवासी हैं और एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे हैं। स्वामी सारंग एक आध्यात्मिक गुरु हैं और उन्होंने इमाम हुसैन का अध्ययन भी किया है। यह दर्शाता है कि विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ शांति और सद्भाव से रह सकते हैं। स्वामी सारंग का योगदान सराहनीय है और वह हमें सिखाते हैं कि मानवता सबसे बड़ा धर्म है।