×

संयुक्त राष्ट्र महासभा का इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के समाधान के लिए ऐतिहासिक प्रस्ताव

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इस प्रस्ताव में दो स्वतंत्र राज्यों के गठन का सुझाव दिया गया है, जिसमें हमास को कोई भूमिका नहीं दी गई है। 142 देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि कुछ देशों ने इसके खिलाफ वोट दिया। यह प्रस्ताव भविष्य की शांति वार्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बन सकता है। जानें इस प्रस्ताव के पीछे की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

महासभा ने पारित किया महत्वपूर्ण प्रस्ताव

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने शुक्रवार को इजरायल-फिलिस्तीन विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसे औपचारिक रूप से 'फिलिस्तीन के प्रश्न के शांतिपूर्ण समाधान और दो-राज्य समाधान के कार्यान्वयन पर न्यूयॉर्क घोषणा' कहा जाता है। इस घोषणा में इजरायल और फिलिस्तीन के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद को समाप्त करने के लिए दो स्वतंत्र राज्यों के गठन का प्रस्ताव रखा गया है.


हमास की भूमिका का स्पष्ट अभाव

इस प्रस्ताव में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि इसमें हमास को किसी भी प्रकार की भूमिका नहीं दी गई है। हमास, जो वर्तमान में गाजा पट्टी पर नियंत्रण रखता है, को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा हिंसक गतिविधियों और आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसलिए, इस घोषणा में स्पष्ट किया गया है कि शांति प्रक्रिया में हमास की भागीदारी नहीं होगी.


142 देशों का समर्थन

इस प्रस्ताव पर मतदान के दौरान 142 देशों ने समर्थन में वोट दिया, जो इस समाधान के लिए वैश्विक समर्थन का संकेत है। भारत भी उन देशों में शामिल है जिन्होंने इस प्रस्ताव का समर्थन किया.


वहीं, 10 देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कुछ राष्ट्र इस तरह के समाधान पर सहमत नहीं हैं। इसके अलावा, 12 देशों ने मतदान से दूरी बनाए रखी, यानी उन्होंने न तो समर्थन में और न ही विरोध में वोट दिया.


जुलाई में हुई थी घोषणा की शुरुआत

न्यूयॉर्क घोषणा की शुरुआत इस वर्ष जुलाई में हुई थी, जब 17 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों ने मिलकर इस मसौदे को तैयार किया और उस पर सह-हस्ताक्षर किए। इसके बाद इसे महासभा के समक्ष रखा गया और चर्चा के उपरांत मतदान कराया गया. यह घोषणा न केवल दो-राज्य समाधान का समर्थन करती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि भविष्य की किसी भी शांति वार्ता में आतंकवाद और हिंसक गतिविधियों को कोई स्थान नहीं मिलेगा.


शांति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

विश्लेषकों का मानना है कि महासभा द्वारा इस घोषणा को पारित करना इजरायल-फिलिस्तीन विवाद को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम है। हालांकि इस तरह के प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन यह विश्व समुदाय की सामूहिक इच्छा और रुख को प्रदर्शित करते हैं.


भारत सहित अधिकांश देशों का मानना है कि स्थायी शांति तभी संभव है जब दोनों पक्ष स्वतंत्र और सुरक्षित रूप से साथ-साथ रह सकें। इस घोषणा को इसी दिशा में एक शुरुआती आधार माना जा रहा है, जो भविष्य की शांति वार्ताओं के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है.