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सपना: कठिनाइयों को पार कर हैंडबॉल में बनाई पहचान

पानीपत की 21 वर्षीय सपना ने अपने संघर्षों के बावजूद हैंडबॉल में एक अद्वितीय पहचान बनाई है। माता-पिता के बिना पली-बढ़ी सपना ने कई राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर पदक जीते हैं। उनके कोच और परिवार का समर्थन उनके सफर में महत्वपूर्ण रहा है। जानें सपना की प्रेरणादायक कहानी और उनके भविष्य के सपनों के बारे में।
 

सपना की प्रेरणादायक कहानी

पानीपत। अहर गांव की 21 वर्षीय सपना ने कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए हैंडबॉल के क्षेत्र में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है। माता-पिता के बिना बड़ी हुई इस युवा खिलाड़ी ने अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प से यह साबित कर दिया है कि अगर किसी चीज़ की चाह हो, तो रास्ते अपने आप बन जाते हैं। सपना ने न केवल अपने जिले बल्कि राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भी कई उपलब्धियां हासिल की हैं, जिससे उन्होंने अपने गांव, जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया है।


सपना के पदक और उपलब्धियां

सपना के पदक


सपना ने अब तक जिला स्तर पर आठ स्वर्ण पदक, राज्य स्तर पर छह स्वर्ण पदक और राष्ट्रीय स्तर पर दो स्वर्ण और दो रजत पदक जीते हैं। हाल ही में, उन्होंने गुरुग्राम में आयोजित हरियाणा ओलंपिक में भी रजत पदक प्राप्त किया। वर्तमान में, सपना चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय से बीपीएड की पढ़ाई कर रही हैं और खेल के साथ-साथ पढ़ाई में भी संतुलन बनाए रखती हैं।


जीवन की चुनौतियाँ

सपना का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। उनके पिता का निधन तब हुआ जब वह लगभग पांच साल की थीं, और उनकी मां उन्हें छोड़कर चली गई। इसके बाद, उनके ताऊ के बेटे जगबीर ने उनका पालन-पोषण किया। सपना का एक छोटा भाई साहिल है, जो अमेरिका में रहते हैं।


प्रशिक्षण और भविष्य की योजनाएँ

प्रशिक्षण का महत्व


पिछले दो वर्षों से सपना कोच शीतल से हैंडबॉल का प्रशिक्षण ले रही हैं। कोच शीतल ने बताया कि सपना एक अनुशासित और मेहनती खिलाड़ी हैं, जो हर दिन मैदान में पूरी मेहनत से अभ्यास करती हैं। सपना का सपना है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन करें।


सपना ने कहा कि खेलों में उनकी रुचि बचपन से रही है, और धीरे-धीरे हैंडबॉल उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। उनके ताऊ के बेटे जगबीर ने हमेशा उनका समर्थन किया है, चाहे वह पढ़ाई हो या खेल। कोच शीतल का मार्गदर्शन भी उनके लिए महत्वपूर्ण रहा है।