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सुप्रीम कोर्ट का चुनाव आयोग को आधार को दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूची में नागरिकों के नाम जोड़ने के लिए आधार को मान्यता देने का आदेश दिया है। इस निर्णय ने पिछले दो महीनों से चल रही अनिश्चितता को समाप्त कर दिया है। इसके साथ ही, अदालत ने राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर सवाल उठाते हुए उन्हें मतदाताओं की सहायता के लिए सक्रिय होने की सलाह दी। इस मामले की अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी।
 

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह बिहार में मतदाता सूची में नागरिकों के नाम जोड़ने के लिए आधार को एक वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार करे। इस निर्णय ने पिछले दो महीनों से चल रही अनिश्चितता को समाप्त कर दिया है। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के पहले चरण में जिन 65 लाख व्यक्तियों के नाम हटाए गए हैं, उन्हें अपनी पहचान को फिर से जोड़ने के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की सुविधा प्रदान की जाए। इस मामले की अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी.


मतदाता सूची में नाम जोड़ने की प्रक्रिया

चुनाव आयोग ने एसआईआर के पहले चरण के बाद एक मसौदा मतदाता सूची जारी की है, जिसमें कुल 7 करोड़ 24 लाख नाम शामिल हैं। हालांकि, 65 लाख से अधिक लोगों के नाम हटा दिए गए हैं, लेकिन आयोग ने उनके दावों और आपत्तियों के लिए एक महीने का समय निर्धारित किया है, जिसमें से 22 दिन बीत चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को हुई सुनवाई में ऑनलाइन आवेदन की अनुमति देने का आदेश दिया और कहा कि आधार कार्ड सहित फॉर्म छह में दिए गए 11 दस्तावेजों में से कोई भी प्रस्तुत किया जा सकता है, जैसे कि ड्राइविंग लाइसेंस, बैंक पासबुक, और पानी का बिल.


राजनीतिक दलों की भूमिका पर सवाल

सुनवाई के दौरान, अदालत ने राजनीतिक दलों को इस मामले में चुप्पी साधने के लिए फटकार लगाई और पूछा कि वे मतदाताओं की सहायता के लिए क्या कदम उठा रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, 'राजनीतिक दलों की निष्क्रियता चौंकाने वाली है। राज्य की 12 पार्टियों में से केवल तीन ही अदालत में उपस्थित हुई हैं।' उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों के पास लगभग 1 लाख 60 हजार बूथ स्तर के एजेंट होने के बावजूद, केवल दो आपत्तियां ही प्राप्त हुई हैं.


चुनाव आयोग का आश्वासन

चुनाव आयोग के वकील ने सर्वोच्च न्यायालय को आश्वस्त किया कि सभी प्रक्रियाएं सही दिशा में चल रही हैं और आयोग को समय दिया जाना चाहिए ताकि वह अपनी प्रक्रिया को पूरा कर सके। दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया की समय सीमा बढ़ाने की मांग की। उन्होंने कहा, 'इस प्रक्रिया को लेकर जमीन पर भ्रम फैला हुआ है। आयोग को इस पर एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करनी चाहिए और समय सीमा बढ़ानी चाहिए ताकि निष्पक्षता बनी रहे।' वकील प्रशांत भूषण ने पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा, '7.24 करोड़ मतदाताओं का क्या होगा? 12 प्रतिशत को बीएलओ ने 'नॉट रिकमेंडेड' कहा है।' उन्होंने यह भी कहा कि हर दिन 36 हजार फॉर्म की जांच करना संभव नहीं है, जिससे कोई उपाय नहीं बचेगा.