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सुप्रीम कोर्ट का मानवीय फैसला: गर्भवती महिला और उसके बेटे की भारत वापसी

सुप्रीम कोर्ट ने गर्भवती महिला सोनाली खातून और उसके बेटे सबीर की बांग्लादेश से भारत वापसी का आदेश दिया है। केंद्र सरकार ने मानवीय आधार पर यह निर्णय लिया है, जिसमें महिला को मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने के निर्देश भी शामिल हैं। सुनवाई के दौरान, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय एक अपवाद है और अन्य मामलों में इसका उदाहरण नहीं लिया जाएगा। जानें इस संवेदनशील मामले की पूरी जानकारी और अदालत के निर्देशों के बारे में।
 

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का महत्वपूर्ण निर्णय

नई दिल्ली: बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक संवेदनशील मामले की सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार ने मानवीय आधार पर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। सरकार ने अदालत को सूचित किया कि गर्भवती महिला सोनाली खातून और उसके 8 वर्षीय बेटे सबीर को बांग्लादेश से भारत लाया जाएगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची के समक्ष यह जानकारी दी, जिसके बाद अदालत ने दोनों की भारत में प्रवेश की अनुमति दे दी। इसके साथ ही, पश्चिम बंगाल सरकार और बीरभूम जिला प्रशासन को मां-बेटे की देखभाल और स्वास्थ्य के लिए सख्त निर्देश दिए गए हैं।


सरकार का मानवीय दृष्टिकोण

सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल ने स्पष्ट किया कि सोनाली और उसके बेटे की वापसी पूरी तरह से मानवीय आधार पर की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि इस निर्णय का केस की मेरिट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और सरकार के पास उन्हें निगरानी में रखने का अधिकार रहेगा। केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय एक अपवाद है और इसे अन्य मामलों में उदाहरण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। दरअसल, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि क्या गर्भावस्था को देखते हुए महिला को वापस लाया जा सकता है, जिसके बाद सरकार ने अपनी सहमति दी।


पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश

अदालत ने महिला की गर्भावस्था को ध्यान में रखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया है कि वह सोनाली को मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करे। इसके लिए बीरभूम के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। साथ ही, राज्य सरकार को 8 वर्षीय सबीर की देखभाल सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि चूंकि सोनाली को दिल्ली से हिरासत में लिया गया था, इसलिए उन्हें पहले दिल्ली लाया जाएगा। हालांकि, प्रतिवादी पक्ष के वकील ने सुझाव दिया कि उन्हें सीधे बीरभूम भेजा जाना चाहिए, जहां उनके पिता रहते हैं।


विशेष अनुमति याचिका का मामला

यह मामला केंद्र सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका से संबंधित है, जिसमें कलकत्ता हाई कोर्ट के 27 सितंबर के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने भोदू शेख की हैबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके परिवार के सदस्यों को वापस लाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, जस्टिस बागची ने कहा कि यदि सोनाली अपने पिता भोदू शेख (जो भारतीय नागरिक हैं) के साथ जैविक संबंध साबित कर देती हैं, तो वह अपनी भारतीय नागरिकता सिद्ध कर सकती हैं।


राज्य और केंद्र के बीच बहस

सुनवाई के दौरान केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच तीखी बहस भी हुई। राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अन्य चार लोगों को भी वापस लाने की मांग की, जिस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि वे बांग्लादेशी हैं और केंद्र का इस पर गंभीर मतभेद है। मेहता ने यह भी कहा कि राज्य सरकार इस मामले में हस्तक्षेप क्यों कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में चल रही अवमानना की कार्यवाही पर फिलहाल कोई लिखित रोक नहीं लगाई है, लेकिन यह स्पष्ट किया है कि जब तक मामला शीर्ष अदालत में है, हाई कोर्ट आगे नहीं बढ़ेगा। मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी।