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सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीश यशवंत वर्मा को दी कड़ी फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा को नकदी से जुड़े विवाद में कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने उनकी याचिका को अस्वीकार करते हुए गंभीर सवाल उठाए हैं। जस्टिस वर्मा ने एक आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी थी, जिसके बाद अदालत ने उनकी दलीलों पर तीखी प्रतिक्रिया दी। इस मामले ने न्यायपालिका की आंतरिक जांच प्रक्रियाओं और न्यायाधीशों की जवाबदेही पर नई बहस छेड़ दी है।
 

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने नकदी से संबंधित विवाद में फंसे अपने न्यायाधीश, जस्टिस यशवंत वर्मा को कड़ी फटकार लगाई है। जस्टिस वर्मा ने एक याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यह याचिका दाखिल नहीं होनी चाहिए थी। जस्टिस वर्मा ने एक आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की थी, जो भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा उनके खिलाफ आरोपों की जांच के लिए बनाई गई थी।


सोमवार को मामले की सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष हुई। सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिका के औचित्य पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने कहा, “इस याचिका में मांगी गई प्राथमिक राहत अपने आप में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ है।” दरअसल, जस्टिस वर्मा ने उस आंतरिक समिति की रिपोर्ट को अमान्य करने का अनुरोध किया था, जिसमें उन्हें नकदी बरामदगी से जुड़े विवाद में दोषी ठहराया गया था।


पीठ ने जस्टिस वर्मा से यह भी पूछा कि उन्होंने अपनी याचिका के साथ वह आंतरिक जांच रिपोर्ट क्यों नहीं संलग्न की, जिसे वह चुनौती दे रहे हैं।


जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत एक निर्धारित प्रक्रिया है और किसी भी न्यायाधीश के आचरण पर सार्वजनिक बहस नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा, “संवैधानिक व्यवस्था के तहत, सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर वीडियो जारी करना या मीडिया द्वारा न्यायाधीशों पर सार्वजनिक टिप्पणी करना प्रतिबंधित है।”


सिब्बल की दलीलों पर पीठ ने और तीखे सवाल किए। अदालत ने पूछा, “आप जांच समिति के सामने पेश ही क्यों हुए? क्या आप समिति के पास यह सोचकर गए थे कि शायद फैसला आपके पक्ष में आ जाए?”


सुप्रीम कोर्ट की इन सख्त टिप्पणियों ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने ही न्यायाधीश द्वारा आंतरिक जांच प्रक्रिया को इस तरह से चुनौती दिए जाने से नाखुश है। इस मामले ने न्यायपालिका की आंतरिक जांच प्रक्रियाओं और न्यायाधीशों की जवाबदेही को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।