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सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्तों के मुद्दे पर सुनवाई: क्या मिलेगी न्याय की नई दिशा?

सुप्रीम कोर्ट आज आवारा कुत्तों के मुद्दे पर महत्वपूर्ण सुनवाई करेगा। यह मामला 'कान्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया)' द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें तात्कालिक सुनवाई की मांग की गई थी। प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने इस पर ध्यान देने का आश्वासन दिया है। विभिन्न पीठों द्वारा दिए गए विरोधाभासी आदेशों के बीच, यह सुनवाई न्यायपालिका की भूमिका और जिम्मेदारियों पर प्रकाश डालेगी। जानें इस मामले में जजों के निर्देश और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की महत्वपूर्ण बातें।
 

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का मामला

सुप्रीम कोर्ट: आज देश में आवारा कुत्तों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। बुधवार को 'कान्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया)' द्वारा दायर याचिका का उल्लेख करते हुए वकील ने तात्कालिक सुनवाई की मांग की। इस पर प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने आश्वासन दिया कि वे इस पर ध्यान देंगे। मामला अब नई गठित तीन सदस्यीय पीठ के पास भेजा गया है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट की विभिन्न पीठों ने आवारा कुत्तों से संबंधित विरोधाभासी आदेश जारी किए थे, जिससे इस मुद्दे पर स्पष्ट दिशा तय करना कठिन हो गया है। एक आदेश में सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा की बात कही गई, जबकि दूसरे में आवारा कुत्तों को आश्रय में रखने के लिए तात्कालिक कार्रवाई के निर्देश दिए गए।


जजों द्वारा दिए गए निर्देश

वकील ननिता शर्मा ने जस्टिस जे.बी. पार्डीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ के तात्कालिक आदेश का उल्लेख किया, जिसमें दिल्ली-एनसीआर के सभी क्षेत्रों से आवारा कुत्तों को हटाकर स्थायी रूप से आश्रय में रखने का निर्देश दिया गया था। वहीं, जस्टिस जे.के. माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने मई 2024 में आदेश दिया था कि किसी भी परिस्थिति में कुत्तों की अंधाधुंध हत्या नहीं की जा सकती और सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा होनी चाहिए।


SC की स्पेशल बेंच करेगी मामले की सुनवाई

प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने मामले को जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ को सौंप दिया है। यह पीठ आज गुरुवार को मामले की सुनवाई करेगी और आवारा कुत्तों से संबंधित आदेशों पर स्पष्टता लाने का प्रयास करेगी।


आदेश में कही गई बातें

आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा: न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि वह लोगों को उन सच्चाइयों की याद दिलाने का साहस और शक्ति रखे जिन्हें वे सुनना नहीं चाहते। इसके साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया कि न्यायपालिका को भावनाओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए। इसका दायित्व भावनाओं को प्रतिबिंबित करना नहीं, बल्कि न्याय, विवेक और समानता के स्थायी सिद्धांतों को बनाए रखना है।