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हिमाचल प्रदेश में मानसून के कहर से तबाही का मंजर

हिमाचल प्रदेश में हालिया मानसून ने तबाही मचाई है, जिसमें 78 लोगों की जान चली गई है। भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने राज्य को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। मंडी जिला सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, जहां कई घटनाएं हुई हैं। जानें इस संकट की पूरी कहानी और इसके प्रभावों के बारे में।
 

हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं का कहर

हिमाचल प्रदेश, जो अपनी खूबसूरत पहाड़ियों और शांत वादियों के लिए जाना जाता है, इस बार मानसून के दौरान भयंकर तबाही का सामना कर रहा है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 20 जून से शुरू हुए मानसून में अब तक 78 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 31 लोग लापता हैं। इनमें से लगभग 50 मौतें भूस्खलन, बादल फटने और अचानक बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई हैं। इसके अलावा, सड़क दुर्घटनाओं में भी 28 लोगों की जान गई है। एसडीएमए ने बताया कि बारिश से संबंधित घटनाओं में मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है और स्थिति नियंत्रण में नहीं है।


क्यों बार-बार कुदरत बन रही है कहर? हाल के हफ्तों में हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों में भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। मंडी जिला इस तबाही का सबसे बड़ा शिकार बना है, जहां 10 बड़ी घटनाएं हुई हैं। बारिश के कारण डूबने से 8 मौतें हुई हैं, जबकि बिजली गिरने और अन्य कारणों से भी जानें गई हैं। मंडी में सबसे ज्यादा 17 लोग मारे गए हैं, इसके बाद कांगड़ा में 11 मौतें हुई हैं। शिमला, कुल्लू और चंबा जैसे पर्यटन स्थलों पर भी इसका असर पड़ा है। सड़क दुर्घटनाओं में चंबा में 6 मौतें हुई हैं।


इंफ्रास्ट्रक्चर को भी भारी नुकसान हुआ है। एसडीएमए के अनुसार, राज्य में 269 सड़कें बंद हैं, 285 बिजली ट्रांसफार्मर ठप हो गए हैं और 278 से अधिक पेयजल योजनाएं प्रभावित हुई हैं। अनुमान है कि सार्वजनिक और निजी संपत्ति को 57 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो गई हैं और कई घरों और गौशालाओं को भी नुकसान पहुंचा है। दूरदराज के गांवों में स्थिति और भी गंभीर है, जहां स्कूल और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं।