हिरोशिमा की त्रासदी: 80 साल बाद भी जिंदा हैं यादें और डर
6 अगस्त 1945: एक काला दिन
6 अगस्त 1945, एक ऐसा दिन जिसे इतिहास ने काले अक्षरों में दर्ज किया है। इसी दिन अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया था। यह हमला इतना भयानक था कि पल भर में पूरा शहर खंडहर में बदल गया। लोग मोम की तरह पिघल गए, इमारतें ध्वस्त हो गईं, और जीवन की चीखें गूंज उठीं। इस त्रासदी को 80 साल हो चुके हैं, लेकिन इसके जख्म आज भी ताज़ा हैं, न केवल जापान के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए।
80वीं वर्षगांठ पर हिरोशिमा ने रोका समय
आज, 6 अगस्त 2025 को, हिरोशिमा एटॉमिक बमिंग की 80वीं वर्षगांठ पर दुनियाभर से लोग उस क्षण को याद करने के लिए एकत्रित हुए। सुबह 8:15 बजे, ठीक उसी समय जब बम गिराया गया था, पूरे शहर में मौन रखा गया। जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा और हिरोशिमा के मेयर काजुमी मात्सुई ने इस समारोह में भाग लेते हुए शांति का संदेश दिया।
जब हिरोशिमा बना नरक का मैदान
6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने 'लिटिल बॉय' नामक परमाणु बम गिराया, जिसने चंद सेकंड में लगभग 1,40,000 जिंदगियों को लील लिया। इसके तीन दिन बाद, 9 अगस्त को नागासाकी पर 'फैट मैन' नामक दूसरा बम गिरा, जिसमें 70,000 से अधिक लोगों की जान गई। दो शहर और लाखों जिंदगियां कुछ ही मिनटों में तबाह हो गईं।
परमाणु हथियारों का खतरा बढ़ा
80 साल बाद भी पीड़ितों और संगठनों का डर कम नहीं हुआ है। जापान के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता संगठन 'निहोन हिदानक्यो' ने चेतावनी दी है कि हमारे पास अब ज्यादा समय नहीं है। परमाणु खतरा पहले से कई गुना बढ़ चुका है। आज की वैश्विक राजनीति और हथियारों की होड़ ने एक बार फिर से उस खतरे को जीवित कर दिया है, जो 1945 में सबने झेला था।
जापान की संधि पर चुप्पी से असंतोष
यह हैरान करने वाली बात है कि जापान ने अब तक परमाणु हथियारों की मनाही वाली संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। वह अमेरिका की 'न्यूक्लियर सिक्योरिटी शील्ड' के अंतर्गत है, जिससे पीड़ितों में गहरा असंतोष है। 79 वर्षीय कोसेई मितो, जो परमाणु हमले के समय अपनी मां के गर्भ में थे, कहते हैं कि जब हमले को ही जायज ठहराया जाता है, तो परमाणु हथियारों को खत्म करना असंभव हो जाता है।
सरकार पर पीड़ितों का गुस्सा
जापानी सरकार ने अब तक केवल युद्ध में शामिल सैनिकों को मुआवजा दिया है, जबकि आम नागरिक पीड़ित आज भी न्याय से वंचित हैं। पूर्व प्रधानमंत्री भले ही हर साल इस त्रासदी को 'शांति का प्रतीक' बताते रहें, लेकिन पीड़ितों के लिए यह बस एक खोखला वादा बनकर रह गया है।
पुनर्निर्माण की मिसाल
बेशक, हिरोशिमा अब एक आधुनिक, जीवंत शहर है। पुनर्निर्माण के बाद यह फिर से बस गया है और लोग सामान्य जीवन जी रहे हैं। लेकिन वह दर्द, वह इतिहास, हर साल 6 अगस्त को फिर से सामने आ जाता है, एक चेतावनी की तरह, कि ऐसी भूल दोबारा न दोहराई जाए।