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CJI बीआर गवई ने छात्रों को दी सफलता की नई परिभाषा

CJI बीआर गवई ने गोवा के VM सालगाओकार कॉलेज में छात्रों को संबोधित करते हुए अपने कॉलेज के दिनों की मजेदार यादें साझा कीं। उन्होंने बताया कि परीक्षा परिणाम ही सफलता का मापदंड नहीं होते। गवई ने छात्रों को प्रेरित किया कि मेहनत, निष्ठा और पेशे के प्रति समर्पण ही असली सफलता के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने कानूनी शिक्षा में सुधार की आवश्यकता पर भी जोर दिया, यह बताते हुए कि सभी कॉलेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
 

CJI गवई का प्रेरणादायक संबोधन

CJI बीआर गवई ने शनिवार को गोवा के VM सालगाओकार कॉलेज ऑफ लॉ के स्वर्ण जयंती समारोह में छात्रों को संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों की मजेदार और प्रेरणादायक यादें साझा कीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल परीक्षा के परिणाम किसी छात्र की सफलता का मापदंड नहीं होते। 


कॉलेज के दिनों की यादें

गवई ने बताया कि कॉलेज के पहले दो वर्षों में वे अक्सर कक्षा में अनुपस्थित रहते थे। वे अपने दोस्तों के भरोसे अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते थे। उन्होंने मजाक में कहा कि वे एक 'आउट-स्टैंडिंग' छात्र थे, यानी कक्षा के बाहर अधिक समय बिताते थे। अंतिम वर्ष में जब उन्हें अमरावती में कॉलेज जाना पड़ा, तब भी उन्होंने शायद ही आधा दर्जन बार कक्षा में उपस्थिति दर्ज करवाई। उनके एक मित्र, जो बाद में हाई कोर्ट के न्यायाधीश बने, उनके लिए उपस्थिति दर्ज करवाते थे।


सफलता का असली मापदंड

गवई ने यह भी बताया कि इस दौरान उन्होंने किताबों और पुराने सॉल्व्ड पेपर्स से पढ़ाई की। उन्होंने कहा कि इस तरह भी वे मेरिट लिस्ट में तीसरे स्थान पर थे। उनके अनुसार, केवल कक्षा में बैठना या परीक्षा में रैंक हासिल करना किसी की योग्यता का सही मापदंड नहीं है।


रैंक और करियर की सीख

सफलता का निर्धारण


CJI गवई ने उदाहरण देते हुए बताया कि मेरिट लिस्ट के टॉपर और दूसरे स्थान पर रहने वाले साथी विभिन्न क्षेत्रों में सफल हुए। टॉपर क्रिमिनल लॉयर बने, जबकि दूसरे स्थान पर रहने वाले दोस्त सीधे जिला जज बने और बाद में हाई कोर्ट के न्यायाधीश बने। गवई ने छात्रों को बताया कि सफलता का निर्धारण केवल परीक्षा रैंक से नहीं होता, बल्कि यह आपके संकल्प, मेहनत, निष्ठा और पेशे के प्रति समर्पण पर निर्भर करता है।


समुद्री किनारे का आकर्षण

कॉलेज के अनुभव


इस अवसर पर बंबई हाईकोर्ट के न्यायाधीश महेश सोनक ने भी अपने कॉलेज के दिनों का अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि मिरामार बीच कॉलेज से केवल 200 मीटर दूर था, और समुद्री किनारे का आकर्षण उनके लिए कक्षा और लाइब्रेरी से अधिक था। इस कारण वे और उनके साथी अक्सर कक्षा में अनुपस्थित रहते थे। सोनक ने भी खुद को 'आउट-स्टैंडिंग' छात्र बताया। 


कानूनी शिक्षा में सुधार की आवश्यकता

कानूनी शिक्षा का महत्व


CJI गवई ने देश में कानूनी शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि केवल राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (NLU) ही महत्वपूर्ण नहीं हैं। तालुका और जिले स्तर के कॉलेजों से आने वाले छात्र भी उच्च न्यायिक पदों तक पहुंच सकते हैं। उन्होंने कहा कि देशभर के कॉलेजों में इन्फ्रास्ट्रक्चर, फैकल्टी और पाठ्यक्रम में सुधार की आवश्यकता है। गवई ने यह भी कहा कि छात्रों और शिक्षकों को सिर्फ NLU या CLAT पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि सभी कॉलेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।