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अमित शाह की राजनीतिक रणनीतियों पर गहराई से नजर

इस लेख में अमित शाह की राजनीतिक रणनीतियों और उनके भविष्य की योजनाओं का गहन विश्लेषण किया गया है। यह चर्चा की गई है कि कैसे वे भाजपा के भीतर अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं और क्या उनके निर्णय पार्टी के लिए फायदेमंद होंगे। जानें कि संघ के भीतर उनकी स्थिति और अन्य नेताओं के साथ उनके संबंध कैसे प्रभावित कर सकते हैं।
 

अमित शाह की राजनीतिक दृष्टि

मैं अमित शाह की राजनीतिक संरचना को अच्छी तरह समझता हूं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने में उनकी दूरदर्शिता और जनता की नब्ज को समझने की क्षमता का बड़ा हाथ था। हालांकि, यह देखकर आश्चर्य होता है कि वे प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं देवकांत बरूआ जैसे व्यक्तियों में देख रहे हैं। मेरा मानना है कि अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद ऐसा निर्णय लेना केवल अमित शाह के लिए संभव था। इसलिए, यदि वे हिंदुओं के उत्साह में प्रधानमंत्री बनने की योजना बना रहे हैं, तो यह स्वाभाविक है। इसके लिए उन्हें योगी आदित्यनाथ, देवेंद्र फड़नवीस, नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान जैसे पुराने और नए नेताओं को बाहर करना होगा और 2029 के चुनावों के लिए भाजपा को अपनी पार्टी बनाना होगा। लेकिन यदि वे पार्टी संगठन को देवकांत बरूआ जैसे लोगों से भर देते हैं, तो 2029 में वोट कैसे प्राप्त होंगे? यदि वे धर्मेंद्र प्रधान, सुनील बंसल या भूपेंद्र यादव को अध्यक्ष बनाते हैं, तो 2029 में उनके चेहरे की तैयारी का चाणक्य कौन होगा? क्या अमित शाह को यह गलतफहमी है कि वे चाणक्य और चंद्रगुप्त दोनों हैं?


संभव है कि नरेंद्र मोदी को यह गलतफहमी हो कि लोकसभा चुनाव में 303 से 240 सीटों पर गिरने के बावजूद हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में जीत उनके जादू का परिणाम है। इसी तरह, अमित शाह को भी यह गलतफहमी हो सकती है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में उनके माइक्रो मैनेजमेंट का बड़ा हाथ है। जबकि संघ का मानना है कि महाराष्ट्र में क्षेत्रीय प्रचारक अतुल लिमये की सामाजिक रणनीति ने स्थिति को बदल दिया। हरियाणा में भी ऐसा ही हुआ, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अमित शाह अब आत्ममुग्धता में हैं।


एक संघ के जानकार ने बताया कि संघ अब अमित शाह को भाजपा संगठन की बर्बादी के लिए जिम्मेदार मानने लगा है। चर्चा है कि मनोहर लाल खट्टर को अध्यक्ष बनाने पर सहमति बन रही थी, लेकिन अमित शाह ने इसे रोक दिया क्योंकि खट्टर मोदी के प्रति वफादार हैं। अमित शाह ने देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले को भी टलवाए रखा। वे योगी आदित्यनाथ के विरोधी हैं क्योंकि वे मोदी के बाद हिंदू चेहरे के रूप में प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं।


यह सब बातें आम लोगों में चर्चा का विषय बन गई हैं, लेकिन संघ के जानकारों में मोदी से ज्यादा अमित शाह के प्रति चिढ़ का मतलब यह है कि सत्ता ने अमित शाह की दूरदर्शिता को तात्कालिकता में बदल दिया है। हाल ही में गुजरात में एक कंपनी पर आयकर का छापा पड़ा, जिसमें यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की पोती बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में थीं। इस पर हड़कंप मच गया और फिर कहा गया कि दिल्ली में नरेंद्र मोदी, आनंदीबेन और अमित शाह की बैठक में कुछ ऐसा हुआ, जिसकी भनक अब सस्पेंस में है।


इसलिए, यह लगता है कि गुजरात और उत्तर प्रदेश में भाजपा का अध्यक्ष वह नहीं होगा जो अमित शाह चाहेंगे। वह वही होगा जो योगी, आनंदीबेन, मोदी और संगठन मंत्री के माध्यम से संघ चाहेगा। सोचिए, चार साल बाद के लोकसभा चुनाव से पहले अमित शाह संघ परिवार के भीतर योगी और देवेंद्र फड़नवीस जैसे नेताओं के बीच घिरे हुए हैं, तो वे कैसे आगे प्रधानमंत्री बनेंगे, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है!