अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के बीच G-20 पर बढ़ती तकरार
G-20 में अमेरिका की अनुपस्थिति का प्रभाव
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने हाल ही में कहा कि अमेरिका ने G-20 सम्मेलन में भागीदारी को लेकर अपने रुख पर पुनर्विचार करने के संकेत दिए हैं। उन्होंने इसे एक "सकारात्मक संकेत" बताया और कहा कि "बहिष्कार की राजनीति कभी सफल नहीं होती।" हालांकि, व्हाइट हाउस ने उनके इस दावे को "फेक न्यूज़" करार देते हुए कहा कि राष्ट्रपति "बेवजह बोल रहे हैं।" यह बयानबाज़ी केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं है, बल्कि G-20 की सामूहिकता में गहरी दरारों का संकेत है।
व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया
रामफोसा ने कहा कि अमेरिका ने अंतिम समय में सूचित किया कि वह जोहांसबर्ग शिखर सम्मेलन में किसी न किसी रूप में शामिल हो सकता है। लेकिन व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि केवल कार्यकारी राजदूत मार्क डी. डिलार्ड औपचारिक समारोह में भाग लेंगे, जबकि "अमेरिका G-20 चर्चाओं में भाग नहीं ले रहा।" प्रेस सचिव कैरोलाइन लेविट ने इसे और तीखा करते हुए कहा कि दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति "अमेरिका के खिलाफ बेवजह बोल रहे हैं" और यह भाषा "बर्दाश्त नहीं की जाएगी।"
अमेरिका का बहिष्कार और उसके कारण
अमेरिका का बहिष्कार ट्रंप प्रशासन के आरोपों के बाद आया है, जिसमें दक्षिण अफ्रीका पर "श्वेत लोगों के खिलाफ भेदभाव" और "श्वेत किसानों पर हिंसा" जैसे आरोप लगाए गए थे। अमेरिका ने यह भी कहा कि दक्षिण अफ्रीका का एजेंडा "अमेरिकी नीति के विपरीत" है, इसलिए वह किसी भी संयुक्त घोषणा का समर्थन नहीं करेगा। G-20 शिखर सम्मेलन पहली बार किसी अफ्रीकी देश में आयोजित हो रहा है, जो कम आय वाले देशों के कर्ज़ समाधान, न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण और महत्वपूर्ण खनिजों जैसे मुद्दों पर केंद्रित है।
G-20 की मूल भावना पर हमला
G-20 एक ऐसा मंच है जो "सर्वसम्मति" पर आधारित है। अमेरिका का इस मंच से दूर रहना, विशेषकर जब वह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, G-20 की मूल भावना पर सीधा हमला है। अमेरिका की अनुपस्थिति का व्यापक असर पड़ने की संभावना है। G-20 हमेशा से वैश्विक आर्थिक शासन का इंजन माना गया है, लेकिन अमेरिका का बहिष्कार यह दर्शाता है कि सुपरपावर अब उन मंचों को महत्व नहीं दे रहा जहां उसे मनमानी करने का मौका न मिले।
चीन और रूस की बढ़ती भूमिका
दक्षिण अफ्रीका, ब्रिक्स देशों और अफ्रीकी संघ की बढ़ती भूमिका अमेरिका के लिए चुनौती बनती जा रही है। अमेरिका का बहिष्कार इस संदेश को और मजबूत करता है कि पश्चिम अपनी शर्तों पर ही बहुपक्षीयता चाहता है। अमेरिका की अनुपस्थिति चीन, रूस और मध्य-पूर्वी शक्तियों को नैरेटिव सेट करने का अवसर देती है। चीन और रूस पहले ही यह तर्क दे रहे हैं कि "पश्चिम अविश्वसनीय और गैर-जिम्मेदार" है।
अफ्रीका में चीन का प्रभाव
अफ्रीका वह महाद्वीप है जहां चीन ने गहरे तरीके से आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक निवेश किया है। अमेरिका का G-20 से बाहर रहना प्रिटोरिया और पूरे अफ्रीका को यह संकेत देता है कि वाशिंगटन इस क्षेत्र को प्राथमिकता नहीं मानता। यह एक रणनीतिक गलती हो सकती है, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। G-20 का एजेंडा विशेष रूप से महत्वपूर्ण खनिजों पर केंद्रित है, जो रक्षा उद्योग, ऊर्जा और एआई तकनीक की रीढ़ हैं। अमेरिका की गैर-भागीदारी इन संसाधनों पर चीन की पकड़ को और मजबूत कर सकती है।
भविष्य की विश्व-व्यवस्था
जब अमेरिका खुद को कमरे से बाहर कर लेता है, तो कमरे की राजनीति कौन संभालता है? जवाब स्पष्ट है—चीन। अमेरिका का यह कदम G-20 में शक्ति संतुलन को चीन के पक्ष में झुका देता है। भारत भी G-20 का स्थायी नेतृत्वकर्ता बनना चाहता है और पहले ही ग्लोबल साउथ की आवाज़ बन चुका है। लेकिन अमेरिका-दक्षिण अफ्रीका के बीच राजनीतिक टकराव इस मंच की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाता है, जिसका असर भारत की दीर्घकालीन रणनीति पर भी पड़ सकता है।
अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के बीच तकरार
अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के बीच यह तकरार केवल शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि यह भविष्य के वैश्विक संतुलन का संकेत है। अमेरिका का "नाराज़ होकर कमरे से बाहर रहना" दर्शाता है कि वह बहुपक्षीय मंचों को तभी सहन करता है जब वे उसकी बात मानें। रामफोसा की टिप्पणी, "We will not be bullied," एक ऐसे अफ्रीका की घोषणा है जो अब झुकने को तैयार नहीं है। G-20 की असली ताकत उसकी सामूहिकता में थी, लेकिन अगर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ही इस टेबल पर बैठने से इंकार करे तो G-20 कैसे वैश्विक नेतृत्व का मंच बना रहेगा?
अमेरिका का नया दृष्टिकोण
आज का संदेश स्पष्ट है कि अमेरिका अब बहुपक्षीयता में नहीं, टकराव में विश्वास करता है। वहीं ग्लोबल साउथ धमकी में नहीं, बराबरी में विश्वास करता है। इस संघर्ष की परिणति तय करेगी कि भविष्य की विश्व-व्यवस्था किसके हाथों में होगी—पुराने सुपरपावर के या नए आत्मविश्वास से भरे उभरते राष्ट्रों के।