×

आलू की अगेती फसल: 15 से 25 सितंबर के बीच करें बुवाई

किसान आलू की अगेती फसल से अच्छा लाभ कमा सकते हैं। 15 से 25 सितंबर के बीच आलू की बुवाई करने से 65 से 70 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। जानें जल्दी पकने वाली किस्में और बुवाई की सही विधि। इस लेख में आलू की खेती के लिए आवश्यक जानकारी दी गई है, जिससे किसान अधिक मुनाफा कमा सकें।
 

किसानों के लिए आलू की अगेती फसल से मुनाफा


किसान आलू की अगेती फसल से अच्छा लाभ कमा सकते हैं। देश में आलू की भरपूर पैदावार होती है। आलू की अगेती फसल की बुवाई के लिए 15 से 25 सितंबर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। यदि किसान इस अवधि में आलू की बुवाई करते हैं, तो 65 से 70 दिनों में फसल तैयार हो जाती है, जिससे वे मंडी में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।


शुरुआत में आलू का मूल्य मंडी में 30 से 35 रुपये प्रति किलोग्राम होता है। इसके अलावा, किसान गेहूं की बुवाई का समय भी देख सकते हैं, जिससे वे दोगुना लाभ कमा सकते हैं। आलू की पछेती बुवाई के लिए 15 से 25 अक्टूबर का समय भी उपयुक्त रहता है। कई किसान 15 नवंबर से 25 दिसंबर के बीच भी आलू की पछेती बुवाई करते हैं।


जल्दी पकने वाली आलू की किस्में

कुफरी ख्याति, कुफरी अशोक, कुफरी सूर्या, कुफरी पुखराज, कुफरी लीमा, कुफरी बहार, कुफरी चन्द्रमुखी, और कुफरी लवकार जैसी किस्में जल्दी पकने वाली हैं। इनमें से कुफरी ख्याति एक उच्च उपज देने वाली सफेद कंद वाली किस्म है।


कुफरी अशोक 70 से 80 दिनों में पक जाती है और प्रति हेक्टेयर 40 टन तक पैदावार दे सकती है। कुफरी सूर्या उच्च तापमान सहन कर सकती है और 75 से 80 दिनों में पकती है। कुफरी पुखराज 70 से 90 दिनों में तैयार होती है।


बुवाई से पहले ध्यान देने योग्य बातें

आलू की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी में जैविक पदार्थ की अच्छी मात्रा होनी चाहिए और पानी का निकास भी अच्छा होना चाहिए। मिट्टी की पीएच 5.2 से 6.4 के बीच होनी चाहिए।


किसान को क्षेत्र और मौसम के अनुसार आलू की किस्म का चयन करना चाहिए। किस्म का चयन करते समय मिट्टी की उर्वरता और प्रकार का भी ध्यान रखें। ऐसी किस्म चुनें जो रोग प्रतिरोधी हो। बीजों का वजन 30 से 50 ग्राम होना चाहिए और उनमें 2 से 3 आंखें होनी चाहिए।


आलू के बीज लगाने की विधि

आलू के बीजों को 5-7 सेमी की गहराई पर लगाना चाहिए। बीजों को फफूंद नाशक दवाओं से उपचारित करें ताकि फसल स्वस्थ हो सके। इससे उत्पादन में वृद्धि होगी और रोगों की संभावना कम होगी।


बुवाई के समय खेत में यूरिया और सिंगल सुपर फॉस्फेट डालें। मिट्टी की जांच करवाकर उर्वरक की मात्रा और प्रकार का निर्धारण करें। पहली सिंचाई बुवाई के 17 दिन बाद और दूसरी 30 दिन बाद करें। बुवाई के 20 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें।


अतिरिक्त जानकारी

ये भी पढ़ें: जानें कैसे धान की फसल को कीट और रोगों से बचाएं