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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के खिलाफ निष्कासन प्रस्ताव: सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में निष्कासन प्रस्ताव लंबित है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने अपनी पहचान को 'XXX' के रूप में छिपाया है। इस याचिका में आंतरिक जांच रिपोर्ट और उन्हें पद से हटाने की सिफारिश को रद्द करने की मांग की गई है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के बारे में।
 

जज जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला

इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ उनके निवास पर नकदी की बोरियों से संबंधित मामले में संसद में निष्कासन प्रस्ताव लंबित है। इस संदर्भ में, जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने अपनी पहचान को 'XXX' के रूप में छिपा रखा है। याचिका में उन्होंने आंतरिक जांच रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा उन्हें पद से हटाने की सिफारिश को रद्द करने की मांग की है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ द्वारा 28 जुलाई 2025 को सुनवाई की जाएगी.


गोपनीयता का महत्व

सुप्रीम कोर्ट के रिकॉर्ड में जस्टिस वर्मा का नाम 'XXX' के रूप में दर्ज किया गया है। इस प्रकार की गोपनीयता आमतौर पर यौन उत्पीड़न, बलात्कार या हमले की शिकार महिलाओं की पहचान को सुरक्षित रखने के लिए उपयोग की जाती है। इसके अतिरिक्त, वैवाहिक विवादों में नाबालिगों की पहचान को उजागर होने से रोकने के लिए भी इस तरह के छद्मनाम का प्रयोग होता है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही निर्देश दिए हैं कि बलात्कार पीड़ितों के नाम अपने फैसलों में उजागर न किए जाएं। हालांकि, जस्टिस वर्मा के मामले में उनकी पहचान को गुप्त रखने का कारण स्पष्ट नहीं है, जो इसे और भी असामान्य बनाता है.


मामले का विवरण

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विवाद तब शुरू हुआ जब उनके आवास पर भारी मात्रा में नकदी की बोरियां मिलने की खबर आई। इस मामले की जांच के लिए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने एक आंतरिक समिति का गठन किया था। समिति की रिपोर्ट के आधार पर, मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस वर्मा को उनके पद से हटाने की सिफारिश की थी। इसके बाद संसद में उनके खिलाफ निष्कासन प्रस्ताव पेश किया गया, जो अभी लंबित है.


जस्टिस वर्मा की याचिका

जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि उनके खिलाफ की गई जांच और सिफारिशें अनुचित और पक्षपातपूर्ण हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि आंतरिक जांच रिपोर्ट को रद्द किया जाए और निष्कासन प्रस्ताव को रोकने के लिए उचित निर्देश जारी किए जाएं.


गोपनीयता का कानूनी आधार

भारतीय न्याय प्रणाली में गोपनीयता के प्रावधान संवेदनशील मामलों में याचिकाकर्ताओं की निजता और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया था कि यौन अपराधों से जुड़े मामलों में पीड़ितों की पहचान को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 228ए और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश लागू किए गए हैं। नाबालिगों की पहचान को सुरक्षित रखने के लिए किशोर न्याय अधिनियम (जेजे एक्ट) के तहत भी प्रावधान हैं.


विशेषज्ञों की राय

हालांकि, जस्टिस वर्मा का मामला न तो यौन अपराध से संबंधित है और न ही इसमें कोई नाबालिग शामिल है। ऐसे में उनकी पहचान को 'XXX' के रूप में गुप्त रखने का निर्णय कई सवाल खड़े करता है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम संभवतः मामले की संवेदनशीलता और सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर उठाया गया हो सकता है.