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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस वर्मा पर महाभियोग की तैयारी

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी चल रही है। इस मामले में कपिल सिब्बल और विवेक तन्खा जैसे प्रमुख राजनीतिक नेता सक्रिय हैं, जो जस्टिस वर्मा का बचाव कर रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस के अभिषेक सिंघवी ने इस्तीफे की अपील की है। इस विवाद में सबूतों की कमी और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं पर चर्चा की जा रही है। जानें इस मामले की पूरी कहानी और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य।
 

जस्टिस वर्मा का मामला और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में स्थिति और भी दिलचस्प होती जा रही है। सरकार उनके खिलाफ महाभियोग लाने की योजना बना रही है, जबकि विपक्षी दलों में इस मुद्दे पर एकजुटता की कमी नजर आ रही है। समाजवादी पार्टी के समर्थन से निर्दलीय राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल जस्टिस वर्मा का खुलकर बचाव कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के वकील और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने भी सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं और महाभियोग की प्रक्रिया को नियमों के अनुसार शुरू करने की सलाह दी है। दोनों नेताओं का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कराई गई आंतरिक जांच की रिपोर्ट के आधार पर महाभियोग की प्रक्रिया नहीं चल सकती। इसके लिए जजेज इन्क्वायरी एक्ट के तहत एक नई समिति का गठन कर जांच करानी चाहिए।


सिब्बल ने इस संदर्भ में एक अंग्रेजी समाचार पत्र को दिए गए इंटरव्यू में पुलिस की जांच पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि पुलिस ने नकदी जब्त क्यों नहीं की और पंचनामा क्यों नहीं बनाया? यह जांच की एक महत्वपूर्ण तकनीकी कमी है। जस्टिस वर्मा भी इसी बात का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं, क्योंकि जब वे अपने घर पहुंचे तो वहां कोई नोटों का बंडल नहीं था। इसका मतलब यह है कि अब केवल वीडियो सबूत ही मौजूद हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस के सांसद और वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने एक लेख में जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने की अपील की है। सिंघवी का कहना है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं, जिनके आधार पर सरकार महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी कर रही है। यदि वे इस्तीफा नहीं देते हैं, तो वे महाभियोग के जरिए हटाए जाने वाले पहले जज बन सकते हैं। यह दिलचस्प है कि सिब्बल और सिंघवी, दोनों ही बड़े वकील हैं और एक ही राजनीतिक धारा से जुड़े हैं, फिर भी एक का मानना है कि सबूत नहीं हैं जबकि दूसरे का कहना है कि बहुत से सबूत मौजूद हैं।