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ईरान-इजरायल संघर्ष: न्यूक्लियर डील के कारण बढ़ी दुश्मनी

ईरान और इजरायल के बीच हालिया संघर्ष ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है। दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की है, जिसमें इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं। ईरान ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए इजरायल के प्रमुख शहरों पर मिसाइलें दागी हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे न्यूक्लियर डील, जिसे JCPOA कहा जाता है, ने इन दोनों देशों के बीच की दुश्मनी को और बढ़ा दिया है और युद्ध की स्थिति को जन्म दिया है।
 

ईरान और इजरायल के बीच बढ़ता तनाव

ईरान-इजरायल युद्ध का कारण न्यूक्लियर डील: ईरान और इजरायल के बीच हालात फिर से तनावपूर्ण हो गए हैं। दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू कर दिए हैं। इजरायल ने ईरान की राजधानी तेहरान और उसके परमाणु तथा सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं। वहीं, ईरान ने इजरायल के तेल अवीव, जेरुसलम और गोलान हाइट्स में बैलिस्टिक मिसाइलें दागकर नुकसान पहुंचाया है। इन हमलों के परिणामस्वरूप इजरायल में जान-माल का नुकसान हुआ है। इजरायल के हवाई हमले में ईरान के प्रमुख न्यूक्लियर वैज्ञानिक और शीर्ष सैन्य कमांडर भी मारे गए हैं। लेकिन, आखिरकार दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति क्यों बनी? वह न्यूक्लियर डील क्या है, जिसने ईरान और इजरायल के बीच दुश्मनी को और बढ़ा दिया है, आइए जानते हैं।


क्या इजरायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ है?

इजरायल नहीं चाहता कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करे, जबकि ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल बिजली उत्पादन के लिए है। ईरान का दावा है कि वह चिकित्सा विज्ञान में भी न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रहा है। लेकिन इजरायल का मानना है कि ईरान इस दावे के पीछे छिपकर परमाणु हथियार बना रहा है। इजरायल को चिंता है कि यदि ईरान ने परमाणु हथियार बना लिए, तो वह इसका दुरुपयोग कर सकता है, जिससे पूरी दुनिया के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसलिए, इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले किए हैं।


JCPOA न्यूक्लियर डील का महत्व

ईरान के दो प्रमुख न्यूक्लियर प्लांट नतांज और फोर्डो हैं, जहां रेडियोएक्टिव यूरेनियम को सेंट्रीफ्यूज मशीनों में रिसाइकिल करके परमाणु बम बनाने का कार्य किया जा रहा है। इन प्लांट में लगभग 20,000 मशीनें लगी हैं। जब दुनिया को ईरान के इस कार्यक्रम का पता चला, तो अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए। इससे ईरान की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा। ईरान ने इन प्रतिबंधों को हटाने के लिए अमेरिका से बातचीत की।


JCPOA डील का इतिहास

2015 में अमेरिका ने ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी के साथ मिलकर JCPOA (Joint Comprehensive Plan of Action) नामक डील की। इसका उद्देश्य ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना था। इस डील के बाद अमेरिका ने ईरान पर लगे सभी व्यापारिक प्रतिबंध हटा लिए, लेकिन इसके बदले में ईरान को अपना न्यूक्लियर प्रोग्राम बंद करना था। हालांकि, ईरान ने इस डील का उल्लंघन किया और यूरेनियम का स्टॉक करना जारी रखा। जब अमेरिका को इस बात का पता चला, तो उसने JCPOA को रद्द कर दिया और ईरान पर और सख्त प्रतिबंध लगाए।


न्यूक्लियर डील पर बातचीत का ठप होना

ईरान ने मई 2021 में अमेरिका से JCPOA को फिर से लागू करने के लिए बातचीत की, लेकिन यह समझौता सफल नहीं हो पाया। ट्रंप भी ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के खिलाफ हैं और चाहते हैं कि एक नई डील हो। हाल ही में, इजरायल के हमले के बाद, ईरान ने अमेरिका से न्यूक्लियर डील पर बातचीत करने से इनकार कर दिया।