ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष: भू-राजनीतिक समीकरणों में बदलाव
ईरान का बढ़ता प्रभाव
ईरान एक ऐसा मोर्चा बन गया है, जिसे बचाने में अमेरिका और अन्य महाशक्तियों का भी हित निहित है। यदि ईरान का रुतबा बढ़ता है, तो इसे पश्चिमी वर्चस्व के खिलाफ एक जीत के रूप में देखा जाएगा। यह सफलता यूक्रेन, व्यापार युद्ध, और तकनीकी प्रतिस्पर्धा में मिली उपलब्धियों से भी जुड़ी हुई है, जो दुनिया में उभर रही नई कहानी को स्पष्ट करती है।
इजराइल के हमले और अमेरिका की भूमिका
इजराइल ने 13 जून को ईरान पर घातक हमले किए, जिससे पश्चिम एशिया में युद्ध की स्थिति उत्पन्न हुई। हालांकि, यह घटनाक्रम इजराइल के लक्ष्यों के अनुरूप नहीं रहा। 22 जून को अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर बमबारी की, जिसके जवाब में ईरान ने अमेरिकी सैन्य अड्डों पर हमले किए।
युद्ध की स्थायी स्थिति
यह स्पष्ट है कि यह युद्ध समाप्त नहीं हुआ है, बल्कि यह एक ठहराव है। युद्ध के अंतर्निहित कारणों का समाधान नहीं हुआ है, जिससे पश्चिम एशिया में स्थायी शांति की संभावना नहीं बनती। इजराइल की औपनिवेशिक परियोजना और फिलीस्तीनियों के साथ सह-अस्तित्व की कमी इस क्षेत्र में अशांति का मुख्य कारण है।
फिलिस्तीनी संघर्ष और ईरान की भूमिका
फिलिस्तीनी संगठनों का संघर्ष जारी है, जिसमें ईरान की महत्वपूर्ण भूमिका है। ईरान ने पश्चिमी साम्राज्यवाद के खिलाफ एक अपवाद के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी है। यही कारण है कि इजराइल ईरान को अपना प्रमुख दुश्मन मानता है।
अमेरिका और इजराइल की रणनीति
अमेरिका और इजराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले का उद्देश्य ईरान को परमाणु क्षमता से वंचित करना बताया। हालांकि, ईरान के परमाणु बम बनाने की संभावना को खारिज किया गया है। अमेरिका ने इस मामले में अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन किया है।
भविष्य की संभावनाएँ
ईरान पर हमले के बाद, अमेरिका की छवि कमजोर हुई है। ईरान ने अमेरिकी सैन्य अड्डों पर हमले कर एक नया संदेश दिया है। यह घटनाक्रम पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक समीकरणों में बदलाव का संकेत है।
चीन और रूस की भूमिका
चीन और रूस ने ईरान को समर्थन दिया है, जिससे ईरान अमेरिका और इजराइल को प्रभावी चुनौती देने में सक्षम हुआ है। इन देशों के बीच सहयोग ने नए विश्व समीकरणों को आकार दिया है।