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उत्तर प्रदेश में दंगों के बाद मीडिया प्रबंधन की कहानी

उत्तर प्रदेश में दंगों के बाद मीडिया प्रबंधन की कहानी में सरकारी अधिकारियों पर बढ़ते दबाव और उनके निर्णयों का प्रभाव शामिल है। इस लेख में जानें कि कैसे एक प्रमुख साप्ताहिक पत्रिका ने स्थिति को और बिगाड़ दिया और अधिकारियों ने न्यूज चैनलों के लिए विज्ञापनों की योजना बनाई। क्या यह सब कुछ बदलने वाला था? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 

उत्तर प्रदेश में ब्यूरोक्रेट्स और दंगों का प्रभाव

(पवन सिंह) डिजिटल डेस्क: उत्तर प्रदेश में एक समय ऐसे प्रभावशाली ब्यूरोक्रेट्स थे जिनका कद बहुत बड़ा था। उनके पास कानून से भी अधिक संपर्क थे। एक महिला मुख्यमंत्री के कार्यकाल में उनकी स्थिति इतनी मजबूत हो गई कि उनका नाम हर जगह गूंजने लगा। हालांकि, जब सत्ता बदली, तो उनका प्रभाव भी कम हो गया।

जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने, तब सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में एक प्रतिभाशाली अधिकारी थे। दुर्भाग्यवश, 27 अगस्त 2025 को मुजफ्फरनगर में दंगे भड़क गए, जिसमें 65 लोगों की जान गई और 93 घायल हुए। दंगों को नियंत्रित करने के लिए सेना को बुलाया गया और बाद में कर्फ्यू हटा लिया गया।

इस बीच, सूचना विभाग पर सरकार का दबाव बढ़ा कि मीडिया में चल रही नकारात्मक खबरों को रोका जाए। एक प्रमुख साप्ताहिक पत्रिका ने इस मुद्दे पर एक बड़ा फीचर प्रकाशित किया, जिसमें अखिलेश यादव को नकारात्मक रूप में दर्शाया गया। इसके बाद, अधिकारियों ने न्यूज चैनलों के लिए सरकारी विज्ञापनों की योजना बनाई, जिससे मीडिया में आर्थिक संसाधनों का एक नया खेल शुरू हुआ।

एक दिन, मैंने मुख्यमंत्री को फोन किया और उन्होंने मुझे अपने आवास पर बुलाया। बातचीत के दौरान, उन्होंने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया कि एक प्रभावशाली व्यक्ति को विभाग में लाया जाएगा। इसके बाद, सूचना विभाग के अधिकारियों ने तय किया कि जब वह व्यक्ति आएगा, तो वे विभाग छोड़ देंगे।