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उत्तर प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटर घोटाला: 6.22 लाख मीटर गायब

उत्तर प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटरों के घोटाले का मामला सामने आया है, जिसमें 6.22 लाख पुराने मीटर अभी तक वापस नहीं किए गए हैं। इस स्थिति के कारण बिजली विभाग को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने आरोप लगाया है कि कई निजी कंपनियों को बड़े ऑर्डर दिए गए हैं। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने भी इस मामले में गंभीर आरोप लगाए हैं। जानें इस घोटाले की पूरी कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
 

स्मार्ट मीटर घोटाले का खुलासा

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटरों के संदर्भ में एक बड़ा घोटाला सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार, 38.28 लाख मीटरों में से 6.22 लाख पुराने मीटर अभी तक वापस नहीं किए गए हैं। इस स्थिति के कारण उपभोक्ताओं से बिल वसूलने में कठिनाई हो रही है, जिससे विभाग को भारी वित्तीय नुकसान हो रहा है।

सीतापुर में स्मार्ट मीटर लगाने वाली कंपनी के अधिकारियों के खिलाफ की गई शिकायत ने पूरे प्रदेश में हलचल मचा दी है। गोंडा, बहराइच और बलरामपुर जैसे जिलों में भी स्मार्ट मीटरों से संबंधित समस्याएं सामने आई हैं। विभागीय आंकड़ों के अनुसार, 29 अगस्त तक कुल 38,28,925 स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए गए थे, जिनमें से 6,22,568 पुराने मीटर अभी तक विभाग को नहीं मिले हैं। मीटरों के डिस्प्ले में खराबी, रीडिंग को शून्य करने और सील तोड़ने के कारण बिजली विभाग को लाखों रुपये का नुकसान हुआ है, जिससे उपभोक्ताओं की पुरानी बिलिंग गायब हो गई है और नई बिलिंग शुरू नहीं हो पा रही है।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने स्मार्ट मीटर योजना में अनियमितताओं का खुलासा किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि जीएमआर, पोलरिस, जीनस और इनटैली जैसी कंपनियों को लगभग 27,342 करोड़ रुपये के ऑर्डर दिए गए हैं। पावर कार्पोरेशन प्रबंधन द्वारा स्मार्ट प्रीपेड मीटरों की मीटिंग सप्ताह में केवल दो बार आयोजित की जाती है, जबकि पुराने मीटरों की स्थिति को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। गोंडा और बलरामपुर में लेजर डिस्प्ले को तोड़कर रीडिंग को गायब कर दिया जाता है। वर्मा ने चेतावनी दी है कि यदि यह स्थिति बनी रही, तो प्रदेश में एक बड़ा भ्रष्टाचार का मामला सामने आ सकता है।

विद्युत कर्मचारी समिति का बयान

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने आरोप लगाया है कि विद्युत वितरण निगमों पर एक बड़ी साजिश चल रही है। समिति ने बताया कि निगमों पर उपभोक्ताओं का लगभग 1.15 लाख करोड़ रुपये बकाया है, जबकि प्रबंधन 1.10 लाख करोड़ रुपये के घाटे का दावा कर रहा है। यदि बकाया राशि वसूल की जाए, तो निगम 5,000 करोड़ रुपये के मुनाफे में आ सकते हैं। इसके अलावा, लगभग 6 लाख मीटर अभी तक निगमों को वापस नहीं किए गए हैं और आधे से अधिक मीटरों की रीडिंग शून्य कर दी गई है। साल 2017 के मानकों के अनुसार, अधिकांश संविदा कर्मचारियों की छंटनी की गई है और वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में प्रति सबस्टेशन 18:30 कर्मचारी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति सर्विस स्टेशन 12:5 कर्मचारी का नियम लागू किया गया है।