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उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का राजनीतिक पुनर्मिलन: महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़

उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई राज ठाकरे को राजनीति में पुनर्जीवित किया है, जो पहले से ही हाशिए पर थे। यह गठबंधन महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। जानें कैसे उद्धव ठाकरे की रणनीति उनके लिए और राज ठाकरे के लिए फायदेमंद हो सकती है।
 

राज ठाकरे का राजनीतिक पुनरुत्थान

2015 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद और उनके परिवार को जिस तरह से संजीवनी दी थी, उसी प्रकार उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई राज ठाकरे को एक नया जीवनदान दिया है। यह संभव है कि उद्धव को इससे कुछ लाभ मिले, लेकिन राज ठाकरे, जिन्हें राजनीति के हाशिए पर धकेल दिया गया था, अब पुनर्जीवित हो गए हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि महाराष्ट्र के मतदाताओं ने राज ठाकरे की विभाजनकारी राजनीति को पूरी तरह से नकार दिया था। गैर-मराठी लोगों पर हमले और हिंदुत्व की राजनीति में उनके प्रयास असफल रहे थे। उनकी पार्टी में कोई सांसद, विधायक या पार्षद नहीं जीत सका, और कुछ गुंडों को छोड़कर उनके पास कोई कार्यकर्ता भी नहीं बचा था।


उद्धव ठाकरे का रणनीतिक कदम

इस स्थिति में, उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे के पास जाने का निर्णय लिया। यह महत्वपूर्ण है कि उद्धव से पहले भाजपा और एकनाथ शिंदे ने भी राज ठाकरे का आकलन किया था। दोनों पार्टियों के नेताओं ने राज ठाकरे से मुलाकात की। पिछले विधानसभा चुनाव में, भाजपा गठबंधन महायुति ने राज ठाकरे के बेटे को चुनाव जीताने के लिए काफी प्रयास किए। इस सीट पर उद्धव ठाकरे की पार्टी ने जीत हासिल की, जबकि एकनाथ शिंदे की पार्टी दूसरे स्थान पर रही। राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे अपने पहले चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे। इसके बाद भाजपा और शिंदे सेना ने राज ठाकरे से दूरी बना ली। ऐसे समय में, उद्धव ठाकरे ने उन्हें अपने साथ लिया और दोनों मिलकर बीएमसी चुनाव में उतरेंगे। उद्धव ठाकरे को किसी भी हाल में बीएमसी चुनाव जीतना है, अन्यथा उनकी पार्टी का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। इसलिए उन्होंने धारणा बदलने के लिए राज ठाकरे को साथ लिया। यह संभव है कि उद्धव को इसका लाभ मिले, लेकिन राज ठाकरे को निश्चित रूप से फायदा होगा।