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कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के ढाई साल: डीके शिवकुमार की भूमिका पर चर्चा

कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरे होने के साथ ही डीके शिवकुमार की सत्ता में संभावित भूमिका पर चर्चा तेज हो गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच खेमेबंदी के चलते दोनों नेता 15 नवंबर को दिल्ली में महत्वपूर्ण बैठकें करेंगे। इस दौरान राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात होगी। जानकारों का मानना है कि यदि बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब होता है, तो पार्टी आलाकमान पर सवाल उठ सकते हैं।
 

कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन की चर्चा

कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार को ढाई साल पूरे हो चुके हैं, और इस दौरान डीके शिवकुमार के सत्ता में आने की संभावनाओं पर चर्चा तेज हो गई है। राज्य में कांग्रेस पार्टी और सिद्धारमैया सरकार के मंत्री स्पष्ट रूप से दो गुटों में विभाजित हो गए हैं। इस खेमेबंदी के बीच, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार दोनों 15 नवंबर को दिल्ली जाने वाले हैं। यह दौरा बिहार में वोटों की गिनती के एक दिन बाद होगा, जहां वे कांग्रेस के प्रमुख नेताओं से मुलाकात करेंगे। जानकारी के अनुसार, दोनों गुटों का मूड निर्णायक है। पहले यह कहा गया था कि प्रभारी रणदीप सुरजेवाला कर्नाटक में सभी से बातचीत करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि, दो महीने पहले बातचीत हुई थी, लेकिन उसके बाद कोई प्रगति नहीं हुई।


दिल्ली में महत्वपूर्ण बैठकें

सूत्रों के अनुसार, दोनों नेताओं को दिल्ली में राहुल गांधी से मिलने का कार्यक्रम है। इसके अलावा, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से भी उनकी मुलाकात होगी। लेकिन यह स्पष्ट है कि निर्णय लेने की जिम्मेदारी उनके हाथ में नहीं है। डीके शिवकुमार के गुट को इस बात से नाराजगी है कि प्रियांक खड़गे किसी न किसी तरीके से मौजूदा सरकार और उसकी राजनीति का समर्थन कर रहे हैं। अहिंदा राजनीति और आरएसएस के विरोध के मुद्दे पर प्रियांक और सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र एक समान विचार रख रहे हैं। सिद्धारमैया परिवार शिवकुमार की बजाय सतीश जरकिहोली पर भरोसा कर रहा है। यही कारण है कि यह संघर्ष निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। शिवकुमार को यह समझ में आ गया है कि यदि अभी निर्णय नहीं हुआ, तो भविष्य में भी नहीं होगा। इसके बाद उन पर प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने का दबाव भी बढ़ सकता है। यदि बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब होता है, जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा है, तो पार्टी आलाकमान पर भी सवाल उठेंगे और प्रादेशिक नेताओं की ओर से दबाव बढ़ेगा।