कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस में बढ़ता तनाव
मुख्यमंत्री पद को लेकर टकराव
नई दिल्ली। कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद जारी है। इस बीच, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी ने डीके शिवकुमार को व्हाट्सऐप पर संदेश भेजा है। पिछले एक सप्ताह से डीके शिवकुमार राहुल गांधी से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे। अब राहुल ने उन्हें जवाब में लिखा है, कृपया इंतज़ार करें, मैं आपको कॉल करूंगा। खबर है कि उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार 29 नवंबर को दिल्ली जाने की योजना बना रहे हैं, जहां उन्होंने सोनिया गांधी से मिलने का समय मांगा है। उनका उसी दिन वापस लौटने का कार्यक्रम है।
कांग्रेस में ज्वालामुखी फटने के कगार पर
कर्नाटक में कांग्रेस का ज्वालामुखी फटने के कगार पर है। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच का संघर्ष अब केवल राख नहीं, बल्कि लावा भी उगल रहा है। कांग्रेसी इस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि पार्टी का 'हाईकमान' समय पर हस्तक्षेप करेगा, लेकिन सबसे बड़े फायर फाइटर राहुल गांधी इस समय सीन से गायब हैं। यह दिलचस्प है कि न केवल हाईकमान की भूमिका महत्वपूर्ण है, बल्कि इस विवाद की जड़ भी है, जिसका कांग्रेस के भीतर एक लंबा इतिहास है।
कब खत्म होगी खींचतान?
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार को ढाई साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन स्थिति अब भी स्थिर नहीं है। राजनीतिक गलियारों में सबसे अधिक चर्चा इसी बात की है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान कब समाप्त होगी। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच का यह संघर्ष अब केवल बैकग्राउंड की कहानी नहीं रह गया है। कांग्रेस हाईकमान की भूमिका महत्वपूर्ण होने के बावजूद, वह चुप्पी साधे हुए है, जो आज के संकट का सबसे बड़ा कारण बन गया है। कर्नाटक से आने वाली हर खबर में यह बात बार-बार दोहराई जाती है कि चुनाव के समय सत्ता-साझेदारी का एक फॉर्मूला बना था, जिसके अनुसार सिद्धारमैया आधा कार्यकाल पूरा करेंगे और उसके बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी शिवकुमार को मिल सकती है।
सीएम की कुर्सी पर बैठने का संघर्ष
कुल मिलाकर, जो एक बार सीएम की कुर्सी पर बैठा, वो फिर उठा नहीं। हालांकि यह फॉर्मूला न तो कभी कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया, और न ही किसी दस्तावेज़ में इसका जिक्र है, लेकिन राजनीति में कई बातें कागज पर नहीं लिखी जातीं। बातें कमरे में होती हैं और भरोसे पर टिकी रहती हैं। आज यही भरोसा डगमगाता हुआ नजर आता है। ऐसी हलचलें कभी राजस्थान तो कभी छत्तीसगढ़ में देखी गई हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खींचतान इस हद तक बढ़ गई थी कि सचिन भी पार्टी छोड़ने की सोच रहे थे। ऐसा तो नहीं हुआ, लेकिन राज्य में कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई। छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच 'पावर-शेयरिंग' फॉर्मूला लागू नहीं हो सका। कुल मिलाकर, जो एक बार सीएम की कुर्सी पर बैठा, वो फिर उठा नहीं और कांग्रेस नेतृत्व की उस पर एक न चली।