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कर्नाटक में लिंगायत विवाद: क्या मुख्यमंत्री सिद्धारमैया धर्म को बांटने की कोशिश कर रहे हैं?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के हालिया बयान ने लिंगायत समुदाय में विवाद उत्पन्न कर दिया है। उन्होंने लिंगायत को हिंदू धर्म से अलग बताया, जिससे राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस मुद्दे पर कांग्रेस के विधायक और मंत्री आपस में भिड़ गए हैं, और भाजपा ने भी उनकी आलोचना की है। जानें इस विवाद की गहराई और इसके संभावित राजनीतिक प्रभावों के बारे में।
 

सिद्धारमैया का विवादास्पद बयान

क्या कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपने राजनीतिक हितों के लिए हिंदू धर्म को विभाजित कर रहे हैं? इस विषय पर राज्य में चर्चा तेज हो गई है। जाति गणना को लेकर विभिन्न विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन हिंदू धर्म को कमजोर करने का मुद्दा अलग से उठाया गया है। यह विवाद इतना बढ़ गया है कि कांग्रेस के विधायक और मंत्री आपस में ही भिड़ गए हैं। लिंगायत समुदाय में भी मतभेद उत्पन्न हो गए हैं, और सिद्धारमैया पर आरोप लग रहे हैं। भाजपा ने भी उनके खिलाफ आलोचना की है, जबकि वे लिंगायत को एक अलग धर्म मानने पर अड़े हुए हैं.


लिंगायत और वीरशैव के बीच का मतभेद

सिद्धारमैया के इस बयान ने विवाद को जन्म दिया है, जिसमें उन्होंने कहा कि लिंगायत हिंदू धर्म से अलग है। इसके परिणामस्वरूप, लिंगायत समुदाय के कई मठों के लोग अपने समुदाय के सदस्यों से अपील कर रहे हैं कि वे जाति गणना के फॉर्म में खुद को हिंदू के रूप में न लिखें, बल्कि अन्य विकल्प में दर्ज करें। इस मुद्दे पर लिंगायत और वीरशैव लिंगायत के बीच भी मतभेद उत्पन्न हो गए हैं। सिद्धारमैया सरकार के मंत्री एमबी पाटिल ने मुख्यमंत्री के बयान का समर्थन किया है, जबकि उनके ही एक अन्य मंत्री ने इसे वीरशैव लिंगायत समुदाय को बांटने की कोशिश बताया है। ध्यान देने योग्य है कि लिंगायत शिव की पूजा इष्टलिंग के रूप में करते हैं, जबकि वीरशैव पारंपरिक मूर्तियों की भी पूजा करते हैं.