कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक: बिहार में ऐतिहासिक पल और चुनावी रणनीतियाँ
कांग्रेस कार्यसमिति की ऐतिहासिक बैठक
Congress Working Committee 2025: वर्ष 1940 में अविभाजित बिहार के रामगढ़ में कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी, जिसकी अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने की थी। उस समय कांग्रेस स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख शक्ति थी और इसी बैठक में भारतीय संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा के गठन का पहला औपचारिक प्रस्ताव पारित किया गया था। यह प्रस्ताव भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। आज, 85 वर्षों बाद, कांग्रेस एक बार फिर बिहार में कार्यसमिति की बैठक आयोजित कर रही है, लेकिन अब परिस्थितियाँ पूरी तरह बदल चुकी हैं.
सदाकत आश्रम में बैठक का आरंभ
पटना के सदाकत आश्रम में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक इस संकेत के साथ शुरू हुई कि पार्टी बिहार विधानसभा चुनावों के लिए गंभीर तैयारी कर रही है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री इस बैठक में शामिल हुए। खड़गे ने बिहार कांग्रेस कार्यालय में झंडोत्तोलन कर बैठक की शुरुआत की। सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए जा सकते हैं, जिनका सीधा संबंध आगामी चुनावी रणनीति से होगा.
सदाकत आश्रम का महत्व
सदाकत आश्रम का चयन केवल एक स्थल नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस की ऐतिहासिक जड़ों को पुनर्जीवित करने का एक राजनीतिक संदेश है। यह वही स्थान है जहां महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और मौलाना आजाद जैसी महान हस्तियों ने स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति बनाई थी। आज यह स्थान कांग्रेस का प्रदेश कार्यालय और एक संग्रहालय भी है। जब कांग्रेस 'दूसरे स्वतंत्रता संग्राम' की बात कर रही है, यह स्थल उसके लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है.
संविधान सभा की अवधारणा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर याद दिलाया कि 1940 में रामगढ़ में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में ही संविधान सभा की अवधारणा पर मुहर लगी थी। उन्होंने वर्तमान सरकार और विशेषकर RSS पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जो संगठन अब संविधान का शताब्दी उत्सव मना रहे हैं, उन्होंने तब इसका विरोध किया था। यह टिप्पणी कांग्रेस के वैचारिक संघर्ष को रेखांकित करती है, जिसमें वह खुद को संविधान और लोकतंत्र की रक्षा का वाहक बताना चाहती है.
बिहार चुनाव की रणनीतियाँ
इस बैठक में आगामी बिहार चुनाव के लिए रणनीति बनाने के साथ-साथ चुनाव आयोग के खिलाफ कथित गड़बड़ियों और मतदाता घोटालों के खिलाफ कांग्रेस के अभियान को तेज करने की योजना भी शामिल है। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने भाजपा पर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी चुनाव को धार्मिक मुद्दों में उलझाकर असल समस्याओं से ध्यान भटका रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि जैसे हैदराबाद में कार्यसमिति की बैठक के बाद पार्टी को चुनावी सफलता मिली, वैसा ही असर बिहार में भी देखने को मिलेगा. यह 'हैदराबाद फ़ॉर्मूला' अब बिहार में दोहराया जा रहा है.
गठबंधन सहयोगियों को संदेश
कांग्रेस इस बैठक के माध्यम से केवल भाजपा और जेडीयू को ही नहीं, बल्कि अपने गठबंधन सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को भी एक स्पष्ट संदेश देना चाहती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल 19 सीटें ही जीत सकी थी। इस प्रदर्शन के चलते ही RJD को सरकार बनाने से वंचित रहना पड़ा था, जबकि वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। अब कांग्रेस सीट बंटवारे में अधिक हिस्सेदारी की मांग कर रही है और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार करने में भी हिचक दिखा रही है। यह RJD पर दबाव की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है.
कांग्रेस की नई रणनीति
इस बार कांग्रेस अपने संगठनात्मक बल को भी सामने लाना चाहती है। राहुल गांधी की 1300 किलोमीटर लंबी 'वोटर अधिकार यात्रा' और अब यह कार्यसमिति की बैठक ये दोनों ही संकेत हैं कि पार्टी मैदान में पूरी ताक़त से उतरने के लिए तैयार है। कांग्रेस यह दिखाना चाहती है कि वह केवल सहयोगी दल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की धुरी है और किसी भी राज्य में उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.