कांग्रेस की राजनीति में राहुल गांधी की बढ़ती निर्भरता
राहुल गांधी पर निर्भरता
कांग्रेस पार्टी अब पूरी तरह से राहुल गांधी पर निर्भर होती जा रही है। उनके बिना न तो कोई निर्णय हो रहा है और न ही कोई राजनीतिक गतिविधि संचालित हो रही है। यहां तक कि राहुल द्वारा निर्धारित एजेंडा भी पार्टी के नेता आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। सोनिया गांधी के समय में यह स्थिति नहीं थी। उस समय कांग्रेस के नेता अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रिय रहते थे।
अब ऐसा प्रतीत होता है कि पार्टी की सभी गतिविधियाँ और चुनावी अभियानों का संचालन केवल राहुल गांधी पर निर्भर है। नरेंद्र मोदी की तरह, जो भाजपा की हर राज्य सरकार का संचालन करते हैं, राहुल की स्थिति भी कुछ वैसी ही हो गई है। हालांकि, भाजपा के पास एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है, जबकि राहुल के पास ऐसा कुछ नहीं है।
बिहार चुनाव में राहुल की अनुपस्थिति
हाल ही में राहुल गांधी दक्षिण अमेरिका के दौरे पर गए, जिससे कांग्रेस पार्टी की गतिविधियाँ ठप हो गईं। बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी, लेकिन सीट बंटवारे की बातचीत अटकी रही। चुनाव आयोग ने बिहार की अंतिम मतदाता सूची जारी की, लेकिन राहुल की अनुपस्थिति में पार्टी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
राहुल ने पहले मतदाता सूची के पुनरीक्षण को एक बड़ा मुद्दा बनाया था, लेकिन जब अंतिम सूची आई, तो वे विदेश में थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि पार्टी उनके बिना कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है।
कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति
जब चुनाव आयोग ने बिहार में चुनाव की घोषणा की, तब भी राहुल गांधी देश से बाहर थे। इस स्थिति में, गठबंधन में सीटों का बंटवारा तय नहीं हो पाया। कांग्रेस के नेता निर्णय लेने में असमर्थ रहे।
हरियाणा में दलित आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या के मामले में भी कांग्रेस की प्रतिक्रिया धीमी रही। राहुल गांधी के लौटने के बाद ही पार्टी ने सक्रियता दिखाई। यह दर्शाता है कि पार्टी की गतिविधियाँ राहुल की उपस्थिति पर निर्भर हैं।
आगामी चुनावों की चुनौतियाँ
पश्चिम बंगाल और असम सहित पांच राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं, लेकिन राहुल गांधी का दौरा कहीं नहीं दिख रहा है। उनकी अनुपस्थिति में पार्टी की सक्रियता कम हो गई है।
यदि कांग्रेस चुनाव हार जाती है, तो इसके लिए चुनाव आयोग और मतदाता सूची को दोषी ठहराने की कहानी शुरू हो जाएगी।