कांग्रेस के टिकट वितरण में अराजकता: अल्लावरू की भूमिका पर सवाल
कांग्रेस का नया इकोसिस्टम
कांग्रेस के सोशल मीडिया इकोसिस्टम और पत्रकारों की टीम राहुल गांधी को जननायक के रूप में प्रस्तुत कर रही है, वहीं अब बिहार के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू को भी नायक के रूप में पेश किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि उन्होंने कुछ अद्भुत किया है। लेकिन असलियत यह है कि इस बार कांग्रेस की टिकटें लालू प्रसाद के घर से नहीं, बल्कि पार्टी कार्यालय से वितरित की जा रही हैं। इससे कांग्रेस के पूर्व प्रभारियों और प्रदेश अध्यक्षों का अपमान हो रहा है। अल्लावरू को यह विश्वास दिलाया जा रहा है कि उनका कार्य बहुत क्रांतिकारी है, जबकि चुनाव से पहले महागठबंधन में जो अराजकता आई है, उसके लिए वे जिम्मेदार हैं।
सीट बंटवारे में असंगठितता
कांग्रेस ने महागठबंधन की सीट बंटवारे की प्रक्रिया को पूरी तरह से अव्यवस्थित कर दिया है। यदि सही तरीके से बातचीत होती, तो सीट बंटवारा पहले ही हो चुका होता। लेकिन अंतिम समय तक मामला लटका रहा। सभी सीटों के लिए आवेदन मंगवाने के पीछे किस रणनीति का सहारा लिया गया, यह स्पष्ट नहीं है। सीट बंटवारे से पहले छंटनी समिति की बैठक हुई, और केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक भी आयोजित की गई। इस प्रक्रिया में मजबूत उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर कमजोर उम्मीदवारों को चुना गया।
उम्मीदवारों का चयन
तारिक अनवर ने गजानन शाही का उदाहरण दिया, जो 113 वोट से हार गए थे और उन्हें टिकट नहीं दिया गया। इसी तरह चनपटिया में डॉक्टर एनएन शाही 2015 में 490 वोट से हारे थे। इस बार कांग्रेस ने 30 हजार वोट से हारे अभिषेक रंजन को टिकट दिया, क्योंकि अल्लावरू उन्हें पहले से जानते थे। जाले सीट पर पहले मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया गया, लेकिन बाद में राजद के ऋषि मिश्रा को उम्मीदवार बनाया गया। कांग्रेस ने सीपीआई की बछवाड़ा सीट पर अपना उम्मीदवार दिया और राजद की लालगंज सीट पर भी अपना उम्मीदवार उतारा। प्रभारी के नाम से पैसे मांगने की कहानियां भी सुनने को मिल रही हैं।