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केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए श्रम कोड: हड़ताल का अधिकार सुरक्षित है

केंद्र सरकार ने चार नए श्रम कोड लागू किए हैं, जो पहले के 29 श्रम कानूनों की जगह लेंगे। इन नए नियमों में हड़ताल के अधिकार को लेकर कई बदलाव किए गए हैं। हालांकि, सरकार का कहना है कि हड़ताल का अधिकार अभी भी सुरक्षित है, लेकिन अब कर्मचारियों को हड़ताल से 14 दिन पहले नोटिस देना होगा। जानें इन नए श्रम कोड के बारे में विस्तार से और समझें कि ये नियम श्रमिकों के लिए कैसे प्रभाव डाल सकते हैं।
 

नई श्रम कोड का परिचय


नई दिल्ली: भारत सरकार ने चार नए श्रम कोड लागू कर दिए हैं, जो पहले के 29 श्रम कानूनों की जगह लेंगे। इन नए नियमों के तहत ग्रेच्युटी, छंटनी, नौकरी की शर्तें और हड़ताल से जुड़े कई प्रावधानों में बदलाव किया गया है। कई श्रमिक संगठनों का आरोप है कि इन कानूनों के कारण कर्मचारियों का हड़ताल करने का अधिकार छीन लिया गया है। क्या यह सच है? आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।


सरकार का दृष्टिकोण

21 नवंबर 2025 से लागू किए गए इन चार कोड में वेतन संहिता (2019), औद्योगिक संबंध संहिता (2020), सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य शर्त संहिता (2020) शामिल हैं। सरकार का कहना है कि इन कोड्स से श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा पहले से अधिक होगी। अब हर कर्मचारी को लिखित नियुक्ति पत्र मिलेगा, जिससे नौकरी की शर्तें और वेतन स्पष्ट हो जाएंगे। ओवरटाइम, बीमा, पेंशन और सुरक्षा से संबंधित नियम भी नए तरीके से निर्धारित किए गए हैं।


हड़ताल की परिभाषा

हड़ताल वह स्थिति है, जब किसी विभाग या संगठन के कर्मचारी विरोध जताने के लिए सामूहिक रूप से काम बंद कर देते हैं। इसमें केवल वही कर्मचारी शामिल होते हैं, जो प्रदर्शन कर रहे होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि बैंक कर्मचारी हड़ताल करते हैं, तो केवल बैंक का काम प्रभावित होगा, अन्य क्षेत्रों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।


क्या अब हड़ताल करना मना है?

सरकार ने स्पष्ट किया है कि हड़ताल करने का अधिकार अभी भी सुरक्षित है। किसी भी कर्मचारी से हड़ताल का अधिकार नहीं छीना गया है। बदलाव केवल यह है कि अब हड़ताल करने से 14 दिन पहले कर्मचारियों को नोटिस देना अनिवार्य होगा।


नए नियमों के अनुसार:

1. हड़ताल या तालाबंदी करने से 14 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य होगा.
2. यदि 50 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी एक साथ आकस्मिक अवकाश लेते हैं, तो इसे भी हड़ताल के दायरे में शामिल किया जाएगा।
3. जब सुलह या न्यायाधिकरण में कोई मामला चल रहा होगा, उस दौरान हड़ताल नहीं की जा सकेगी.


सरकार का तर्क

सरकार का कहना है कि नोटिस देने की शर्त से अचानक होने वाली हड़तालें रुकेंगी और कामकाज बाधित नहीं होगा। इससे दोनों पक्षों, मजदूर और मालिक को विवाद सुलझाने का समय मिलेगा और आर्थिक नुकसान भी कम होगा।


विरोध का कारण

मजदूर संगठनों का कहना है कि ये नियम मालिकों के हित में हैं। यदि हड़ताल बिना नोटिस या नियमों के खिलाफ की गई तो उसे गैर-कानूनी माना जाएगा और मजदूर संगठन की मान्यता भी रद्द हो सकती है।


पहले के नियम

औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 22 के तहत पब्लिक यूटिलिटी सर्विस (जैसे बिजली, पानी और बैंक) के कर्मचारियों को पहले से ही 14 दिन का नोटिस देना पड़ता था। अब यह नियम सभी क्षेत्रों पर लागू कर दिया गया है।