क्या Donald Trump हैं Nobel Peace Prize के असली हकदार? जानें उनके दावों की सच्चाई
डोनाल्ड ट्रंप और नोबल शांति पुरस्कार की चर्चा
Donald Trump Nobel Peace Prize: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर नोबल शांति पुरस्कार के संदर्भ में चर्चा में हैं। वह लंबे समय से खुद को शांति के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते आ रहे हैं और कई बार सार्वजनिक मंचों पर यह दावा कर चुके हैं कि उन्हें यह पुरस्कार मिलना चाहिए। लेकिन जब गाजा, यूक्रेन और ईरान जैसे देशों में स्थिति बिगड़ रही है और भारत ने उनके भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम के दावे को खारिज कर दिया है, तो यह सवाल उठता है कि क्या ट्रंप वास्तव में इस वैश्विक सम्मान के योग्य हैं या यह केवल एक राजनीतिक बयानबाजी है?
ट्रंप का कहना है कि उन्होंने कई देशों के बीच तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और वैश्विक शांति को बढ़ावा देने में योगदान दिया है। लेकिन वर्तमान वैश्विक परिदृश्य, जहां युद्ध और संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं, उनके दावों को चुनौती देता है। आइए उनके प्रमुख दावों, विवादों और नोबल पुरस्कार की पात्रता के बारे में विस्तार से जानते हैं।
ट्रंप की नोबल पुरस्कार की इच्छा
डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार सार्वजनिक रूप से नोबल शांति पुरस्कार न मिलने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने कहा है, "क्या मुझे भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकने के लिए नोबल नहीं मिलेगा? सर्बिया और कोसोवो के बीच शांति लाने पर नहीं मिलेगा? इजिप्ट और इथियोपिया के बीच तनाव कम करने पर नहीं मिलेगा?"
उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से अपनी तुलना की, जिन्हें 2009 में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को मजबूत करने के लिए यह पुरस्कार मिला था।
अब्राहम समझौता और ट्रंप का नामांकन
ट्रंप के समर्थक भी उन्हें नोबल पुरस्कार का हकदार मानते हैं। 2021 में नॉर्वे के सांसद क्रिश्चियन टाइबिंग-ग्जेडे ने उन्हें नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया था। इसका आधार इजरायल और यूएई के बीच ऐतिहासिक अब्राहम समझौता था, जिसे ट्रंप ने मध्यस्थता के जरिए संभव बनाया।
भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम: दावे बनाम हकीकत
हाल ही में ट्रंप ने कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध रोकने में मदद की। हालांकि, उन्होंने सीधे तौर पर क्रेडिट नहीं लिया। पाकिस्तान ने उन्हें 2026 नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया, लेकिन भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि यह संघर्षविराम दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच संवाद का परिणाम था, जिसमें ट्रंप या अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी।
गाजा संकट: शांति की कोई पहल नहीं
गाजा पट्टी में अक्टूबर 2023 से शुरू हुई लड़ाई अब भी जारी है। हमास के हमले में 1,200 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग बंधक बनाए गए हैं। इजरायल ने आक्रामक कार्रवाई शुरू की है, जिसमें 54,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की जान जा चुकी है। ट्रंप की ओर से केवल बयानबाजी ही देखने को मिली है, लेकिन कोई ठोस पहल नहीं हुई।
ईरान-इजरायल संघर्ष और ट्रंप की धमकी
12 जून को इज़रायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, जिसे ट्रंप ने "एक्सीलेंट" और "वेरी सक्सेसफुल" बताया। उन्होंने Truth Social पर लिखा, "हमें ठीक से पता है कि तथाकथित 'सर्वोच्च नेता' कहां छिपा है... हम उसे बाहर नहीं निकालेंगे, कम से कम अभी तो नहीं।" उन्होंने ईरान को 60 दिन का अल्टीमेटम भी दिया।
रूस-यूक्रेन युद्ध: बड़ी बातें, छोटे नतीजे
ट्रंप ने चुनावी वादे में कहा था कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध को 24 घंटे में खत्म कर देंगे। उन्होंने व्लादिमीर पुतिन से लंबी फोन कॉल की और कहा कि "हम शांति की दिशा में बढ़ रहे हैं" लेकिन जमीन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
नोबल शांति पुरस्कार की पात्रता
अल्फ्रेड नोबल की वसीयत के अनुसार, शांति पुरस्कार उन व्यक्तियों या संगठनों को दिया जाता है जिन्होंने:
- देशों के बीच भाईचारे को बढ़ावा दिया हो
- सेना को कम करने या युद्ध समाप्त करने में भूमिका निभाई हो
- शांति सम्मेलन आयोजित किए हों
- मानवाधिकार और युद्ध क्षेत्र में राहत कार्य किए हों
- नामांकन की प्रक्रिया गोपनीय होती है और चयन नॉर्वेजियन संसद द्वारा नियुक्त पांच सदस्यीय समिति करती है।
दिलचस्प बात यह है कि पुरस्कार केवल परिणाम पर नहीं, बल्कि "शांति की दिशा में गंभीर और प्रभावी प्रयास" पर भी दिया जा सकता है।
क्या ट्रंप हैं इसके हकदार?
डोनाल्ड ट्रंप खुद को ग्लोबल पीसमेकर के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं, लेकिन वर्तमान वैश्विक हालात इस छवि से मेल नहीं खाते। गाजा, ईरान और यूक्रेन में हिंसा जारी है, भारत ने उनके दावों को खारिज किया है, और उनकी ज्यादातर कूटनीतिक कोशिशें कागजों तक ही सीमित रही हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या नोबल कमेटी ट्रंप को असली शांति दूत मानेगी या उन्हें एक प्रचार-प्रेमी दावेदार के रूप में देखेगी?
इस सवाल का जवाब फिलहाल इतिहास और समय के पास ही है।