क्या अटल बिहारी वाजपेयी बन सकते थे राष्ट्रपति? जानें दिलचस्प कहानी
दिलचस्प राजनीतिक चर्चा का खुलासा
नई दिल्ली: भारत के 11वें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के चयन से पहले एक महत्वपूर्ण राजनीतिक चर्चा हुई थी। उस समय भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर विचार किया गया कि क्या तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इस प्रस्ताव के अनुसार, प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी लालकृष्ण आडवाणी को सौंपी जा सकती थी, जो उस समय पार्टी में एक मजबूत नेता माने जाते थे।
भाजपा में गहन विचार-विमर्श
साल 2002 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में इस विकल्प पर गंभीर चर्चा हुई। उस समय लालकृष्ण आडवाणी पार्टी में प्रभावशाली थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का समर्थन भी उन्हें वाजपेयी की तुलना में अधिक प्राप्त था। इसी राजनीतिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति पद पर भेजने का प्रस्ताव रखा गया था, ताकि सत्ता संतुलन बना रहे।
वाजपेयी ने प्रस्ताव को क्यों ठुकराया?
हालांकि, अटल बिहारी वाजपेयी ने इस सुझाव को तुरंत खारिज कर दिया। उनका मानना था कि यदि एक लोकप्रिय और कार्यरत प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति बना दिया जाए, तो इससे लोकतंत्र में एक गलत परंपरा शुरू हो सकती है। वाजपेयी का कहना था कि प्रधानमंत्री जनता द्वारा चुनी गई सरकार का मुखिया होता है और ऐसे व्यक्ति का सक्रिय राजनीति से हटकर राष्ट्रपति भवन जाना लोकतांत्रिक दृष्टि से उचित नहीं होगा।
अशोक टंडन की किताब में खुलासा
इस घटनाक्रम का उल्लेख अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने अपनी पुस्तक 'अटल स्मरण' में किया है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में टंडन लिखते हैं कि वाजपेयी ऐसे किसी भी प्रस्ताव के खिलाफ थे। उनका कहना था कि वह एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं और ऐसे में उनका राष्ट्रपति बनना लोकतंत्र के लिए गलत मिसाल बन सकता है।
गठबंधन राजनीति में अटल की सोच
अटल बिहारी वाजपेयी को भारत में सफल गठबंधन राजनीति का एक मजबूत चेहरा माना जाता है। उन्होंने 1998 से 2004 तक NDA सरकार का नेतृत्व किया और विभिन्न दलों को साथ लेकर सरकार चलाई। उनकी यही लोकतांत्रिक सोच राष्ट्रपति चुनाव में भी दिखाई दी, जब उन्होंने सत्ता और विपक्ष के बीच सहमति बनाने पर जोर दिया।
कलाम का नाम आगे बढ़ाने की पहल
अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांग्रेस नेतृत्व से संवाद शुरू किया। उन्होंने विपक्ष को विश्वास में लेते हुए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आगे बढ़ाया, जो एक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ राजनीतिक विवादों से दूर थे और देशभर में लोकप्रिय थे। वाजपेयी की पहल पर एनडीए और विपक्ष के बीच आम सहमति बनी।
सोनिया गांधी की प्रतिक्रिया
अशोक टंडन के अनुसार, एक बैठक में जब सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और मनमोहन सिंह अटल बिहारी वाजपेयी से मिले, तब पहली बार उन्हें बताया गया कि एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए डॉ. कलाम का नाम प्रस्तावित किया जाएगा। कलाम का नाम सुनते ही कमरे में सन्नाटा छा गया। इस चुप्पी को सोनिया गांधी ने तोड़ा और कहा कि यह नाम अप्रत्याशित है, लेकिन उनके समर्थन के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
सर्वसम्मति से बने राष्ट्रपति
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति चुने गए। उन्हें सत्ताधारी गठबंधन के साथ-साथ विपक्ष का भी समर्थन मिला, जो भारतीय राजनीति में दुर्लभ उदाहरण है। वह 2007 तक राष्ट्रपति पद पर रहे और 'जनता के राष्ट्रपति' के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई।