क्या तेजस्वी यादव को जनता का समर्थन मिलेगा या परिवारवाद का सहारा?
सियासत की जलेबी: परिवारवाद बनाम जनता का प्यार
राजीव रंजन तिवारी | वर्तमान में देश की राजनीति जलेबी की तरह उलझी हुई है। कभी यह सीधी दिखती है, कभी उल्टी। विश्लेषक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि यह स्थिति कब सामान्य होगी। फिलहाल, बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही है, और चर्चा का केंद्र राजद नेता तेजस्वी यादव हैं। सवाल यह है कि क्या तेजस्वी को जनता का समर्थन मिलेगा या वे अपने परिवारवादी परंपरा के सहारे आगे बढ़ेंगे।
राजनीतिक परिवारों और चुनावी सफलताओं की जटिलता आम जनता को भ्रमित करती है। यह स्पष्ट है कि नेता का बेटा नेता बनेगा। लेकिन क्या यह जनता के प्यार से होगा या परिवारवाद के कारण? बिहार में तेजस्वी यादव के संदर्भ में यही चर्चा हो रही है। लोग जानना चाहते हैं कि क्या तेजस्वी को अपने पिता लालू प्रसाद का समर्थन है या वे खुद को साबित कर रहे हैं।
तेजस्वी यादव के विरोधी यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि लालू-राबड़ी का परिवार बिहार की राजनीति में बहुत आगे बढ़ चुका है। सवाल उठता है कि यदि लालू सामाजिक न्याय के प्रतीक हैं, तो क्या उन्हें अपनी बिरादरी के किसी अन्य व्यक्ति को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए? यदि तेजस्वी को नवंबर 2025 में मुख्यमंत्री बनने का जनादेश मिलता है, तो वे अपने परिवार से तीसरे मुख्यमंत्री बनेंगे।
राजद के प्रवक्ता प्रोफेसर नवल किशोर का कहना है कि तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने में कोई बाधा नहीं है। उनका कहना है कि बिहार में तेजस्वी को जनता का प्यार मिल रहा है, जो उनकी सभाओं में उमड़ती भीड़ से स्पष्ट है।
हालांकि, तेजस्वी यादव को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। सर्वेक्षण के अनुसार, 35 प्रतिशत लोग उन्हें मुख्यमंत्री के लिए पसंदीदा मानते हैं। जदयू के नीतीश कुमार से उनकी बढ़त बनी हुई है, लेकिन प्रशांत किशोर भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
भारतीय राजनीति में परिवारवाद की परंपरा गहरी है। नेहरू-गांधी परिवार से लेकर अन्य राजनीतिक परिवारों तक, यह परंपरा जारी है। तेजस्वी यादव यदि इस परंपरा में शामिल होते हैं, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि वे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाते हैं या नहीं। (लेखक आज समाज के संपादक हैं।)