×

क्या भारत में नेतृत्व की उम्र पर सवाल उठने लगे हैं?

भारत में नेतृत्व की उम्र पर सवाल उठने लगे हैं। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 75 वर्ष की अनौपचारिक सीमा का पालन करते हुए पद छोड़ देना चाहिए? इस लेख में जानें कि कैसे युवा और बुजुर्ग नेताओं के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। क्या दुनिया की सबसे युवा जनसंख्या बार-बार सबसे बुजुर्ग नेताओं को चुन रही है? यह लेख इस मुद्दे पर गहराई से विचार करता है।
 

नेतृत्व और उम्र का सवाल

पिछले वर्ष अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान, चर्चा का केंद्र नीतियों से ज्यादा उम्र बन गई थी। जो बाइडन की याददाश्त पर सवाल उठाए गए, जबकि डोनाल्ड ट्रंप की स्थिति पर भी चर्चा हुई। असल मुद्दा यह था कि किस उम्र तक का नेतृत्व स्वीकार्य है।


आज यह असहजता भारत की राजनीति में भी सुनाई दे रही है। बंद दरवाजों के पीछे यह सवाल उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 75 वर्ष की अनौपचारिक सीमा का पालन करते हुए पद छोड़ देना चाहिए।


हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद यह चर्चा तेज हुई है कि 75 वर्ष के बाद नेताओं को स्वेच्छा से पीछे हट जाना चाहिए। यह एक स्पष्ट संकेत नहीं था, लेकिन भारतीय राजनीति में इशारों का महत्व होता है।


वैश्विक परिप्रेक्ष्य

यह समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं है। कैमरून में 92 वर्षीय राष्ट्रपति पॉल बिया ने हाल ही में घोषणा की कि वे आठवीं बार चुनाव लड़ेंगे। जबकि युवा आबादी की उम्मीद थी कि वे पद छोड़ेंगे, उन्होंने ऐसा नहीं किया। उनके इस निर्णय ने युवा मतदाताओं और सत्ता के बीच की खाई को और बढ़ा दिया है।


आज की दुनिया में, जहां एआई क्रांति और सांस्कृतिक परिवर्तन तेजी से हो रहे हैं, अधिकांश राजनीतिक चेहरे बीसवीं सदी के हैं। भारत में, जहां औसत आयु 30 वर्ष से कम है, नेतृत्व अब भी 70 पार के लोगों के हाथ में है।


उम्र और अनुभव का द्वंद्व

प्राचीन यूनानी इतिहासकार प्लूटार्क ने कहा था कि उम्र अनुभव देती है, लेकिन बदलाव से जड़ता भी लाती है। आज की दुनिया में, कई नेता जैसे बेंजामिन नेतन्याहू, पुतिन, और शी जिनपिंग की उम्र 70 के पार है। क्या यह उम्र उन्हें अधिक समझदार बनाती है, या केवल सत्ता से चिपके रहने की जिद है?


हालांकि, कई युवा नेताओं ने भी नेतृत्व संभाला है। आयरलैंड के लियो वराडकर 38 की उम्र में प्रधानमंत्री बने, और न्यूजीलैंड की जैसिंडा आर्डर्न ने 37 की उम्र में पद छोड़ा। यह दर्शाता है कि युवा नेतृत्व भी संभव है।


बुज़ुर्गतंत्र की चुनौतियाँ

भारत जैसे देश में, जहां युवा हर क्षेत्र में आगे हैं, वहीं नेतृत्व दो या तीन पीढ़ी पुराने नेताओं के हाथ में है। अमेरिका में भी, लोग बाइडन और ट्रंप जैसे 70-80 पार नेताओं को चुनने को तैयार हैं।


इसका एक कारण विकल्प की कमी है। लोग साहस से नए विकल्पों की कल्पना करने में हिचकिचाते हैं। सोशल मीडिया पर नेताओं की छवि को लेकर भी भ्रम है।


इसलिए, जब तक ऐसा नेतृत्व सामने नहीं आता जो युवा सोच रखता हो, तब तक भविष्य केवल दरवाज़ा खटखटाता रहेगा।