क्या हुमायूं कबीर के विवादित बयान ने ममता बनर्जी की सरकार को संकट में डाल दिया?
पश्चिम बंगाल की राजनीति में उथल-पुथल
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की राजनीतिक स्थिति इन दिनों काफी तनावपूर्ण है। टीएमसी से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर लगातार विवादास्पद टिप्पणियों के लिए सुर्खियों में बने हुए हैं, जिससे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह एक गंभीर राजनीतिक चुनौती बन गई है। पार्टी द्वारा सख्त कदम उठाने के बावजूद, कबीर अपने विचारों पर अडिग हैं और पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
कबीर का विवादास्पद बयान
6 दिसंबर को मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में हुमायूं कबीर ने एक विवादास्पद बयान दिया, जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण की आधारशिला रखने का दावा किया। चूंकि यह दिन बाबरी विध्वंस की बरसी है, उनके इस बयान ने और भी अधिक विवाद उत्पन्न किया और यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर विरोध का कारण बन गया। कबीर ने यह भी कहा कि 6 दिसंबर को एनएच-34 'मुस्लिम नियंत्रण' में होगा, जिससे विभिन्न समुदायों में तनाव और चिंता बढ़ गई।
ममता बनर्जी की कार्रवाई
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तुरंत हुमायूं कबीर को टीएमसी से निलंबित कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि कबीर की टिप्पणियां न केवल अस्वीकार्य हैं, बल्कि पार्टी के आधिकारिक रुख का प्रतिनिधित्व भी नहीं करतीं। हालांकि, निलंबन के बाद भी विवाद और बढ़ता गया।
राज्य सरकार की नई चुनौतियाँ
निलंबन के कुछ घंटों बाद, हुमायूं कबीर ने टीएमसी से इस्तीफा देने की घोषणा की। उन्होंने अपने बयान पर कायम रहने की बात कही और बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण के मुद्दे से पीछे हटने से इनकार किया। उनके इस रुख ने राज्य सरकार के लिए नई समस्याएँ खड़ी कर दी हैं।
हिंदू संगठनों का विरोध
कबीर की टिप्पणियों के बाद कई शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं, विशेषकर लखनऊ में। हिंदू रक्षा परिषद ने कबीर के खिलाफ बड़े पैमाने पर रैली आयोजित करने की घोषणा की है, जिससे माहौल और तनावपूर्ण हो गया है।
भाजपा की तीखी प्रतिक्रिया
भाजपा नेताओं ने कबीर के बयान की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि देश में 'बाबर के नाम पर कोई मस्जिद नहीं बनने दी जाएगी।' भाजपा नेता दिलीप घोष ने कहा कि भारत में किसी विदेशी आक्रमणकारी के नाम पर धार्मिक संरचनाओं को स्वीकार नहीं किया जाएगा।