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क्या है 'वंदे मातरम' का असली अर्थ? जानें इस राष्ट्रीय गीत की कहानी

इस वर्ष 2025 में 'वंदे मातरम' के 150 साल पूरे होने पर पूरे देश में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। जानें इस प्रसिद्ध राष्ट्रीय गीत का इतिहास, इसके लेखक और इसका असली अर्थ। यह गीत कैसे स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बना और आज भी लोगों में जोश भरता है। अगली बार जब आप इसे गाएं, तो समझें कि आप अपनी मातृभूमि को सलाम कर रहे हैं।
 

वंदे मातरम: एक राष्ट्रीय धुन की यात्रा


नई दिल्ली: स्कूलों में प्रार्थना सभा के दौरान हम सभी ने 'वंदे मातरम' गाने का अनुभव किया है। इस गीत को सुनते ही एक गर्व का अनुभव होता है, लेकिन बहुत से लोग इसके वास्तविक अर्थ से अनजान हैं। इस वर्ष 2025 में इस राष्ट्रीय गीत की 150वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी, जिसके उपलक्ष्य में पूरे देश में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और एक विशेष डाक टिकट भी जारी किया जाएगा।


गीत का इतिहास: किसने लिखा?

यह प्रसिद्ध बांग्ला गीत बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1875 में उनके उपन्यास 'आनंदमठ' के लिए लिखा गया था। रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में इसे पहली बार गाकर सुनाया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह गीत आजादी की आवाज बन गया, जिससे अंग्रेजों ने इसे गाने पर प्रतिबंध लगा दिया। फिर भी, लोग इसे चुपचाप गाते रहे। 24 जनवरी 1950 को इसे आधिकारिक राष्ट्रीय गीत का दर्जा मिला।


वंदे मातरम का अर्थ

'वंदे मातरम' दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है: वंदे, जिसका अर्थ है 'मैं नमन करता हूं' और मातरम, जिसका अर्थ है 'मां को'। इसका पूरा अर्थ है 'हे मां, मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं' या 'हे भारत माता, मैं तुझे वंदन करता हूं'। यह गीत भारत को मां के रूप में देखता है और उसकी जय-जयकार करता है।


गीत की शक्ति आज भी जीवित

150 साल बाद भी 'वंदे मातरम' सुनते ही जोश का संचार होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी 150वीं वर्षगांठ के कार्यक्रम की शुरुआत की है। स्कूलों से लेकर सोशल मीडिया तक, लोग इसे गा रहे हैं और साझा कर रहे हैं। यह साधारण सा गीत कैसे पूरे देश को एकजुट करने वाला नारा बन गया, यह गर्व की बात है। अगली बार जब आप 'वंदे मातरम' गाएं, तो याद रखें कि आप केवल एक गीत नहीं, बल्कि अपनी मातृभूमि को सलाम कर रहे हैं।