×

क्या है वंदे मातरम का महत्व? पीएम मोदी ने संसद में किया ऐतिहासिक जिक्र

संसद के शीतकालीन सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर एक विशेष चर्चा की। उन्होंने इसे स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण प्रतीक बताया और इसके सांस्कृतिक महत्व पर जोर दिया। चर्चा के दौरान एक मजेदार पल भी आया जब सांसद सौगत रॉय ने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को संबोधित करने के तरीके पर आपत्ति जताई। यह सत्र कई ऐतिहासिक अवसरों के साथ-साथ सांस्कृतिक चर्चाओं का भी गवाह बना।
 

नई दिल्ली में ऐतिहासिक चर्चा


नई दिल्ली : संसद के शीतकालीन सत्र में सोमवार को एक विशेष चर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ मनाई गई। इस चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, जिन्होंने इसे देश के सांस्कृतिक और स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण बताया।


बंकिम दा या बंकिम बाबू?

‘बंकिम दा’ बनाम ‘बंकिम बाबू’ 
इस चर्चा के दौरान एक मजेदार पल तब आया जब प्रधानमंत्री मोदी ने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को संबोधित करते हुए उन्हें "बंकिम दा" कहा। इस पर तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय ने आपत्ति जताई, यह कहते हुए कि बंगाली संस्कृति में “दा” का उपयोग किसी आदर्श व्यक्तित्व के लिए उचित नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि उन्हें “बंकिम बाबू” कहा जाना चाहिए।


क्या सौगत रॉय को दादा कह सकते हैं?
प्रधानमंत्री मोदी ने रॉय की भावना का सम्मान करते हुए कहा, “मैं बंकिम बाबू ही कहूँगा। आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ।” इसके बाद उन्होंने मजाक में पूछा कि क्या वे सौगत रॉय को “दादा” कह सकते हैं, जिस पर सदन में हंसी का माहौल बन गया।


वंदे मातरम का महत्व

वंदे मातरम की सांस्कृतिक शक्ति
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में वंदे मातरम के महत्व को केवल एक राजनीतिक प्रतीक तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने इसे स्वतंत्रता संग्राम का एक पवित्र “युद्धघोष” बताया, जिसने भारतीयों में उपनिवेशवादी शासन से मुक्ति के लिए साहस और एकता की भावना जगाई।


ऐतिहासिक अवसरों का संगम

महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मील के पत्थरों का संगम
प्रधानमंत्री ने बताया कि वंदे मातरम की वर्षगांठ के साथ-साथ देश कई अन्य ऐतिहासिक अवसर भी मना रहा है, जैसे संविधान के 75 वर्ष, सरदार पटेल और बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती, और गुरु तेग बहादुर का 350वाँ शहीदी दिवस।


राष्ट्र के लिए साझा श्रद्धांजलि

राजनीति से परे, राष्ट्र के लिए एक साझा सम्मान
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि इस विशेष सत्र में न तो सरकार का नेतृत्व महत्वपूर्ण है और न ही विपक्ष का अस्तित्व। यह अवसर राष्ट्र के लिए एक साझा श्रद्धांजलि का है। उन्होंने कहा, “हम सब यहाँ वंदे मातरम के प्रति सामूहिक कृतज्ञता व्यक्त करने आए हैं।”


यह विशेष चर्चा संसद के शीतकालीन सत्र का हिस्सा थी, जो 1 दिसंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर तक चलेगा। इस सत्र में कई महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ-साथ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चर्चाएँ भी प्रमुख रहेंगी।