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क्रिकेट में भाईचारे का अनूठा उदाहरण: शम्स मुलानी की पूजा

भारत में क्रिकेट केवल एक खेल नहीं, बल्कि यह एक धर्म की तरह पूजा जाता है। हाल ही में मुंबई में कांगा लीग में मुस्लिम क्रिकेटर शम्स मुलानी ने हिंदू रीति-रिवाजों से विकेट्स की पूजा की, जो भाईचारे का एक अनूठा उदाहरण है। इस घटना ने सोशल मीडिया पर धूम मचाई है और लोगों ने इसे एक सकारात्मक संदेश के रूप में स्वीकार किया है। जानें इस विशेष घटना के बारे में और कैसे यह क्रिकेट की दुनिया में एकता का प्रतीक बन गई।
 

क्रिकेट: एक धर्म से अधिक

भारत में क्रिकेट केवल एक खेल नहीं है, बल्कि इसे एक धर्म की तरह पूजा जाता है। यहां की क्रिकेट टीमों में न तो धर्म का भेद होता है और न ही जाति का, केवल एक चीज महत्वपूर्ण होती है, और वह है खिलाड़ी की क्षमता। भारतीय क्रिकेट जगत में भाईचारे और एकता का संदेश हमेशा से बना रहा है। हाल ही में मुंबई में आयोजित कांगा लीग में इस एकता का एक और अद्भुत उदाहरण देखने को मिला, जब मुस्लिम क्रिकेटर शम्स मुलानी ने हिंदू रीति-रिवाजों से विकेट्स की पूजा की। यह घटना सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गई और चर्चा का विषय बन गई।


कांगा लीग की शुरुआत और शम्स मुलानी का सम्मान: मुंबई की कांगा लीग हर साल आयोजित होती है, जिसमें स्थानीय क्रिकेट क्लब भाग लेते हैं। इस सीजन की शुरुआत 10 अगस्त से हुई और इस बार आयोजन ने एक विशेष मोड़ लिया। लीग की शुरुआत शम्स मुलानी द्वारा किए गए धार्मिक सम्मान से हुई, जिसने सभी का ध्यान आकर्षित किया।


पिच और विकेट्स की पूजा: एक प्रतीकात्मक कदम: 28 वर्षीय शम्स मुलानी, जो मुस्लिम समुदाय से हैं, ने कांगा लीग के इस सीजन की शुरुआत हिंदू परंपरा के अनुसार की। उन्होंने पिच पर बैठकर मिठाई चढ़ाई, फूल अर्पित किए और फिर विकेट्स के सामने नारियल फोड़कर उसके पानी को पिच और विकेट्स पर डाला। इस धार्मिक क्रिया के बाद उन्होंने हाथ जोड़कर आशीर्वाद लिया। उनका यह कदम न केवल क्रिकेट की दुनिया में भाईचारे की मिसाल पेश करता है, बल्कि यह दर्शाता है कि खेल के मैदान पर सभी की समान इज्जत है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या संस्कृति से हो।


सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो: इस अनोखे धार्मिक सम्मान का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। लोग शम्स मुलानी की इस पहल की सराहना कर रहे हैं और इसे एक सकारात्मक संदेश मान रहे हैं। इसने क्रिकेट के खेल को एक नया दृष्टिकोण दिया है, जिसमें धार्मिक विश्वासों का आदान-प्रदान बिना किसी विवाद के किया गया।