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गज़ा में मानव संहार: पश्चिमी देशों की जनता की बढ़ती चिंता

गज़ा में पिछले 22 महीनों से चल रहे मानव संहार ने पश्चिमी देशों की जनता में चिंता की लहर पैदा कर दी है। लाखों लोग इजराइल के हमलों का शिकार बने हैं, और अब यह मुद्दा वैश्विक जनमत का हिस्सा बन चुका है। कई पश्चिमी नेता फिलिस्तीन की स्वतंत्रता का समर्थन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं, जबकि ग्लोबल साउथ में भी इस मुद्दे पर समर्थन बढ़ रहा है। जानें इस जटिल स्थिति के बारे में और कैसे यह भविष्य में राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है।
 

गज़ा में मानव संहार का प्रभाव

गज़ा में पिछले 22 महीनों से चल रहे मानव संहार ने पश्चिमी देशों की जनता में चिंता की लहर पैदा कर दी है। यह स्पष्ट है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों ने फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के मुद्दे को नजरअंदाज करने के प्रयासों का उलटा परिणाम सामने आ रहा है।


गज़ा के निवासियों की पीड़ा व्यर्थ नहीं गई है। लाखों लोग इजराइल के हमलों का शिकार बने हैं, और वहां की 20 लाख की जनसंख्या ने भयानक कष्ट झेले हैं। इजराइल ने खाद्य सामग्री को नष्ट कर दिया है, जिससे स्थानीय लोग भूख के कगार पर पहुंच गए हैं।


विश्व समुदाय की प्रतिक्रिया

गज़ा के निवासियों द्वारा झेले गए दर्द ने विश्व समुदाय में सहानुभूति बढ़ाई है। अब यह स्थिति एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गई है, जहां इजराइल के समर्थक पश्चिमी देशों में हलचल मची हुई है।


पश्चिमी देशों ने इजराइल को स्थापित करने के लिए उपनिवेशवाद का सहारा लिया था, लेकिन अब ज़ायनिज़्म की नींव कमजोर होती दिख रही है। यहूदीवाद, जो नस्लीय सोच पर आधारित है, अब अपने अस्तित्व के संकट में है।


अमेरिका की नीति और उसके परिणाम

यदि स्वतंत्र फिलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना का प्रयास नहीं किया गया होता, तो संभवतः 7 अक्टूबर 2023 को हमास का हमला नहीं होता। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में 'अब्राहम समझौतों' के माध्यम से फिलिस्तीन की स्वतंत्रता की मांग को दबाने का प्रयास किया गया था।


जो बाइडेन के कार्यकाल में भी अमेरिका ने इसी नीति को जारी रखा। इस स्थिति के परिणामस्वरूप हमास ने हमला किया, जिससे इजराइल ने फिर से मानव संहार शुरू किया।


वैश्विक जनमत का उदय

गज़ा में हो रहे मानव संहार के दृश्य ने दुनिया भर में आक्रोश पैदा किया है। जॉन मियरशाइमर के अनुसार, यह पहला मानव संहार है जिसका लाइव प्रसारण हो रहा है।


दुनिया के कई देशों में इस मुद्दे पर जनमत उभर रहा है, और यह अब पश्चिमी देशों के लिए नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया है।


फिलिस्तीन की स्वतंत्रता का सवाल

अब स्वतंत्र फिलिस्तीन का मुद्दा फिर से जीवित हो गया है। कई देशों ने ओस्लो समझौतों के तहत फिलिस्तीन की स्वतंत्रता का समर्थन किया था, लेकिन इजराइल ने इसे नजरअंदाज किया।


हालांकि, अब पश्चिमी देशों को अपनी जनता के दबाव के कारण फिलिस्तीन को मान्यता देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।


पश्चिमी देशों की नई पहल

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने घोषणा की है कि सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान वे फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देंगे।


कनाडा और ब्रिटेन के नेताओं ने भी इसी तरह की घोषणाएं की हैं, जबकि ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने गज़ा में हो रही पीड़ा पर चिंता व्यक्त की है।


ग्लोबल साउथ का समर्थन

ग्लोबल साउथ में फिलिस्तीन के समर्थन में लगातार वृद्धि हो रही है। दक्षिण अफ्रीका ने इजराइल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में याचिका दायर की है, जिसमें 50 से अधिक देशों ने समर्थन किया है।


अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने इजराइल की गतिविधियों को मानव संहार के समान बताया है और इसे रोकने के लिए निर्देश दिए हैं।


संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान

संयुक्त राष्ट्र महासभा में 140 से अधिक देशों ने स्वतंत्र फिलिस्तीन की स्थापना का समर्थन किया है। इन देशों की जनसंख्या विश्व की तीन चौथाई है।


हालांकि, पश्चिमी देशों ने इस जनमत का अनादर किया है, लेकिन अब उनकी सरकारें अपनी वैधता बनाए रखने के लिए कुछ कदम उठाने को मजबूर हो रही हैं।


आर्थिक हित और मानव संहार

अर्थशास्त्रियों ने बताया है कि आर्थिक हित उपनिवेशवाद और मानव संहार के पीछे प्रमुख कारण रहे हैं। यह स्पष्ट है कि इजराइल का कब्जा भी इसी प्रवृत्ति का हिस्सा है।


पश्चिमी सरकारों की हलचल इस बात का संकेत है कि वे अपनी वैधता को बनाए रखने के लिए फिलिस्तीन के हक में कुछ कदम उठाने को मजबूर हैं।