गालिब का शेर: एक गलतफहमी का मामला
गालिब की शायरी और संसद में विवाद
दुनिया भर में शायरी के प्रशंसकों का मानना है कि मिर्जा असदुल्ला खां गालिब ऐसे कवि हैं, जिन्हें सबसे अधिक गलत तरीके से उद्धृत किया गया है और जिनकी रचनाओं को कम समझा गया है। कई लोग यह भी कहते हैं कि गालिब की शायरी को समझना एक चुनौती है, लेकिन जब वह समझ में नहीं आती, तो उसका आनंद और भी बढ़ जाता है। हाल ही में, संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन, कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने एक शेर पढ़ा, जिसे उन्होंने गालिब का बताया। उन्होंने कांग्रेस को यह कहते हुए नसीहत दी, 'उम्र भर गालिब यही भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करता रहा।' हालांकि, यह शेर वास्तव में गालिब का नहीं है। एक प्रमुख अंग्रेजी समाचार पत्र ने इसे बिना किसी सवाल के अगले दिन प्रकाशित कर दिया।
जून 2019 में, 17वीं लोकसभा के चुनाव के बाद के पहले सत्र में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यही शेर पढ़ा था। उन्होंने यह शेर तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के बाद कांग्रेस को नसीहत देने के लिए प्रस्तुत किया। उस समय, जावेद अख्तर ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा उद्धृत शेर गालिब का नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि शेर की दोनों पंक्तियाँ शायरी के मीटर में सही नहीं बैठतीं। वास्तव में, गालिब के किसी भी संग्रह में यह शेर नहीं मिलता। कुछ संदर्भों में इसे असर फैजाबादी का बताया गया है। फिर भी, सोशल मीडिया पर इसे गालिब का शेर बताकर प्रचारित किया गया, और आम जनता के साथ-साथ प्रधानमंत्री और मंत्री भी इसे गालिब के नाम से पढ़ते रहे। यह हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रति अनजान रहने का एक उदाहरण है।