चीन की बढ़ती भूमिका: दक्षिण पूर्व एशिया में शांति की नई पहल
दक्षिण पूर्व एशिया में भू-राजनीतिक बदलाव
बीजिंग: दक्षिण पूर्व एशिया की भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिल रहा है। पहले जहां अमेरिका को शांति समझौतों और युद्धविराम के लिए देखा जाता था, वहीं अब चीन ने इस क्षेत्र में 'बिग ब्रदर' की भूमिका निभाना शुरू कर दिया है। इसका ताजा उदाहरण थाईलैंड और कंबोडिया के बीच चल रहे सीमा विवाद में चीन की सक्रिय मध्यस्थता है। हाल ही में चीन के युन्नान प्रांत में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की एक महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय बैठक हुई, जिसने एशियाई कूटनीति में बीजिंग के बढ़ते प्रभाव को स्पष्ट किया है।
युन्नान में हुई महत्वपूर्ण बैठक
यह बैठक युन्नान प्रांत में हुई, जो विवादित सीमा के निकट स्थित है। इसमें चीनी विदेश मंत्री वांग यी, थाईलैंड के विदेश मंत्री सिहासक फुआंगकेटकेओ और कंबोडिया के विदेश मंत्री प्राक सोखोन शामिल हुए। यह बैठक 27 दिसंबर को दोनों देशों के बीच हुए नए युद्धविराम समझौते के दो दिन बाद आयोजित की गई थी। हाल ही में सीमा पर हुई हिंसा में 100 से अधिक लोगों की जान गई है।
चीन का संदेश: शांति की आवश्यकता
बैठक के दौरान, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि युद्ध की आग को फिर से भड़कने देना किसी के हित में नहीं है। उन्होंने कहा, "न तो दोनों देशों की जनता यह चाहती है और न ही चीन ऐसा देखना चाहता है। हमें क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और विकास के लिए दृढ़ता से आगे बढ़ना होगा।" चीन ने विस्थापित निवासियों को तत्काल मानवीय सहायता प्रदान करने की पेशकश भी की है। तीनों देशों ने संबंधों को चरणबद्ध तरीके से बहाल करने पर सहमति जताई है।
थाईलैंड और कंबोडिया की सकारात्मक प्रतिक्रिया
बैठक के बाद, थाई विदेश मंत्री सिहासक ने कहा, "हमने सभी मुद्दों को हल नहीं किया है, लेकिन हम सही दिशा में प्रगति कर रहे हैं। हमारी प्राथमिकता स्थायी युद्धविराम और विश्वास बहाली है।" कंबोडिया के विदेश मंत्री प्राक सोखोन ने भी कहा, "हम अतीत में वापस नहीं जाना चाहते। कोई भी दोबारा लड़ाई नहीं देखना चाहता। हमें उम्मीद है कि यह युद्धविराम कायम रहेगा।"
पिछले प्रयासों की विफलता
इस विवाद का इतिहास जटिल रहा है। जुलाई में मलेशिया की मध्यस्थता और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में एक युद्धविराम समझौता हुआ था, लेकिन वह टिक नहीं पाया। अब चीन ने इस विवाद को सुलझाने की जिम्मेदारी अपने हाथ में लेकर यह संदेश दिया है कि एशियाई मुद्दों को सुलझाने के लिए पश्चिमी ताकतों की आवश्यकता नहीं है।