जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की राजनीतिक चुनौतियाँ बढ़ीं
मुख्यमंत्री की मुश्किलें
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के लिए हालात कठिन होते जा रहे हैं। राज्यसभा चुनाव में चौथी सीट हारने के बाद उन पर भाजपा के साथ मिलीभगत के आरोप लगे हैं। इसके साथ ही, कई विधायकों की क्रॉस वोटिंग ने उनकी सरकार की स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसके अलावा, नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख नेताओं, फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला पर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती से किए गए वादे को तोड़ने का भी आरोप लगा है। इस बीच, राज्य की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। 11 नवंबर को बडगाम और नागरोटा सीटों पर उपचुनाव होंगे.
उपचुनाव का महत्व
एक सीट उमर के इस्तीफे के कारण खाली हुई थी, जबकि दूसरी सीट भाजपा के देवेंद्र सिंह राणा के निधन से खाली हुई है। इन दोनों सीटों का उपचुनाव नेशनल कॉन्फ्रेंस और भाजपा के लिए न केवल प्रतिष्ठा का सवाल है, बल्कि आगे की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है। वहीं, कांग्रेस के भीतर नाराजगी की खबरें भी आ रही हैं। कांग्रेस चाहती थी कि उमर अब्दुल्ला राज्यसभा की एक सीट उन्हें दें। हालांकि, उमर ने चौथी सीट की पेशकश की, जिसे कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उन्हें पता था कि वह सीट जीतने की संभावना नहीं रखती। इस स्थिति में, कांग्रेस के नेता अब मौके की तलाश में हैं। हालांकि, उनके पास केवल छह विधायक हैं, जबकि उमर की पार्टी के पास 41 विधायक हैं। बहुमत के लिए 46 वोट की आवश्यकता है। यदि पीडीपी और कांग्रेस की नाराजगी का समाधान नहीं होता है, तो सरकार की स्थिति अत्यंत नाजुक बनी रहेगी।