ट्रंप और खोमेनेई: नेतृत्व की नई परिभाषा
नेतृत्व की चर्चा में ट्रंप और खोमेनेई
आज ट्रंप का नेतृत्व और खोमेनेई की भूमिका चर्चा का विषय बनी हुई है। दोनों के बीच गहरी नफरत होने के बावजूद, उनकी हिम्मत की सराहना की जा रही है। इसी तरह, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्स्की और रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी अपने-अपने देश के हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दोनों ट्रंप के सामने अपनी बात को मजबूती से रखते हैं। लेकिन जब हमारे देश में सेना की स्थिति मजबूत थी, तब अचानक ट्रंप द्वारा घोषित युद्धविराम को मान लिया गया। यह स्पष्ट हुआ कि यह युद्धविराम पाकिस्तान के लाभ के लिए था।
हर समय का एक विशेष पैमाना होता है, लेकिन यह तय नहीं किया जा सकता कि वह कैसा होगा। यह अचानक समय के गर्भ से प्रकट होता है। वर्तमान में, पूरी दुनिया नेतृत्व के संकट में है। हर जगह चर्चा हो रही है कि नेतृत्व कैसा होना चाहिए। इस सप्ताह के घटनाक्रम में ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई का नाम सबसे ऊपर है, जिन्होंने इजराइल और अमेरिका को संघर्ष विराम के लिए मजबूर किया। अन्यथा, ये दोनों ईरान को नष्ट करने की बातें कर रहे थे।
हालांकि, खामेनेई ने इतनी बहादुरी से लड़ाई लड़ी कि जो लोग उनका मजाक उड़ा रहे थे, वे अब उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। सफलता सही और गलत की धारणाओं को बदल देती है। इस संदर्भ में, खामेनेई का नाम नेतृत्व के पैमाने पर सबसे ऊपर आ रहा है। लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आत्मविश्वास से भरे नेतृत्व को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
फिर वही बात है कि सही और गलत का निर्णय अपने संदर्भ में होता है। राष्ट्रपति ट्रंप ने डेढ़ महीने के भीतर दो महत्वपूर्ण युद्धविराम की घोषणाएं की। पहले भारत-पाक के बीच और अब ईरान-इजराइल के बीच। इन युद्धविरामों के लाभ और हानि हर देश के लिए अलग-अलग हैं। लेकिन ट्रंप में वह शक्ति थी कि उन्होंने खुद युद्धविराम की घोषणा की। यही नेतृत्व की पहचान होती है।
इस प्रकार, खोमेनेई और ट्रंप का नेतृत्व आज चर्चा में है। दोनों एक-दूसरे को नापसंद करते हैं, फिर भी दोनों ने अपने-अपने तरीके से प्रभाव डाला है। यूक्रेन के जेलेन्स्की और रूस के पुतिन भी इसी तरह के नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। तीन साल से अधिक समय से दोनों लड़ाई कर रहे हैं। ट्रंप ने दूसरी बार सत्ता में आने के बाद इन दोनों के बीच युद्धविराम की कोशिश की। लेकिन जैसे ईरान ने किया, वैसे ही ये दोनों भी अपने समय और शर्तों पर समझौता करना चाहते हैं।
जेलेन्स्की की वह वीडियो वायरल है जिसमें वे ट्रंप और उप-राष्ट्रपति वेंस के साथ तीखी बहस कर रहे हैं। वे स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि वे युद्धविराम को नहीं मानेंगे। सही और गलत का निर्णय बाद में इस आधार पर होगा कि यूक्रेन ने उस दिन समझौता न करके क्या हासिल किया। तीन महीने पहले ओवल ऑफिस में जेलेन्स्की ने अपने देश का पक्ष रखा, जिससे वे एक मजबूत नेता के रूप में उभरे। पुतिन इस समय अमेरिका के खिलाफ सबसे बड़ी ताकत बने हुए हैं।
इन नेताओं ने अपने देश के हितों के लिए व्यक्तिगत छवि की परवाह किए बिना काम किया। लेकिन सभी नेता ऐसा नहीं कर पाते हैं। जब हमारे देश में सेना की स्थिति मजबूत थी, तब ट्रंप द्वारा घोषित युद्धविराम को स्वीकार कर लिया गया, जिससे निराशा का माहौल बन गया। यह समझना आवश्यक है कि यह युद्धविराम पाकिस्तान के लिए फायदेमंद था। यदि 10 मई को ट्रंप की घोषणा के अनुसार युद्धविराम नहीं होता, तो पाकिस्तान को भारी नुकसान होता।
ट्रंप द्वारा घोषित युद्धविराम का कारण आज तक स्पष्ट नहीं हुआ है। 10 मई के बाद उन्होंने कई भाषण दिए, लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि उन्होंने युद्धविराम का समय क्यों चुना। ट्रंप ने कहा कि शाम पांच बजे कार्रवाई बंद कर दी जाए। लेकिन पाकिस्तान, जिसे युद्धविराम की आवश्यकता थी, अपनी सार्वभौमिकता दिखाने के लिए ड्रोन भेजता रहा।
लोगों को इंदिरा गांधी की याद आ रही है, जो मजबूत नेतृत्व का प्रतीक थीं। 1971 का युद्ध, बांग्लादेश का निर्माण, और अमेरिका का हस्तक्षेप सभी को याद आ रहा है। अब इसे कमतर दिखाने के लिए कहा जा रहा है कि उस समय जनरल मानेकशा थे। यह एक मजाक है। नेतृत्व राजनीतिक होता है और युद्धकाल में व्यक्तिगत छवि बनाने की कोशिश नहीं करता।
इन सभी घटनाक्रमों में पाकिस्तान की स्थिति वैसी ही रही जैसी थी, जबकि उसे कमजोर होना चाहिए था। और हमारी स्थिति कमजोर हुई है, जिसे नेतृत्व की कमजोरी माना जा रहा है।