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ट्रंप का जी-7 शिखर सम्मेलन से अचानक लौटना: असहमति का संकेत

डॉनल्ड ट्रंप का जी-7 शिखर सम्मेलन से अचानक लौटना एक महत्वपूर्ण घटना है, जो असहमति और वैश्विक चुनौतियों को उजागर करती है। सम्मेलन में साझा विज्ञप्ति की कमी और ईरान-इजराइल संघर्ष पर चर्चा ने यह स्पष्ट कर दिया कि सदस्य देशों के बीच मतभेद गहरे हैं। जानें इस सम्मेलन में क्या मुद्दे उठाए गए और भविष्य में जी-7 की प्रासंगिकता पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
 

ट्रंप का अचानक लौटना

यह स्पष्ट है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का कनानास्किस में जी-7 शिखर सम्मेलन से लौटना किसी आपात स्थिति के कारण नहीं था। इसके पीछे असल वजह ग्रुप के सदस्यों के बीच उभरे मतभेद थे। इस बात का प्रमाण यह है कि सम्मेलन में कोई साझा विज्ञप्ति जारी नहीं की गई, बल्कि एक विस्तृत बयान जारी किया गया जिसमें विभिन्न देशों के विचार शामिल थे।


शिखर सम्मेलन की मुख्य बातें

कनानास्किस में ट्रंप का सम्मेलन छोड़कर जाना मुख्य चर्चा का विषय बना। 17 जून को यह बताया गया कि ट्रंप ईरान-इजराइल संघर्ष के कारण लौटे हैं, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया। इसके बजाय, उन्होंने ईरान को बातचीत का एक और मौका देने की इच्छा व्यक्त की।


साझा बयान की कमी

शिखर सम्मेलन में कोई साझा विज्ञप्ति न होने से यह स्पष्ट होता है कि सदस्य देशों के बीच कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई। इनमें शामिल थे: आव्रजन तस्करी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और अन्य सहयोग के क्षेत्र। ईरान-इजराइल युद्ध पर एक अलग संयुक्त बयान जारी किया गया, जिसमें इजराइल के आत्म-रक्षा के अधिकार की पुष्टि की गई।


महत्वपूर्ण मुद्दों की अनदेखी

हालांकि ईरान के मुद्दे पर सहमति थी, लेकिन अन्य महत्वपूर्ण विषयों जैसे यूक्रेन में रूस की कार्रवाई, ट्रंप के व्यापार टैरिफ, और जलवायु परिवर्तन पर कोई चर्चा नहीं हुई। जी-7 देशों के लिए चीन के उदय को रोकना एक प्रमुख चिंता बनी हुई है, लेकिन अमेरिका की स्पष्ट रणनीति का अभाव है।


जी-7 की प्रासंगिकता पर सवाल

जी-7 की प्रासंगिकता पर सवाल उठता है, खासकर जब यह ध्यान में आता है कि इन देशों की अर्थव्यवस्था में उत्पादन क्षमता कम हो रही है। आर्थिक असमानता और जलवायु परिवर्तन के संकट ने इन देशों की स्थिति को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है।


भविष्य की चुनौतियाँ

जी-7 देशों के नेताओं को अब यह स्वीकार करना होगा कि विकासशील देशों का एक बड़ा हिस्सा अब उठ खड़ा हुआ है, जिसमें चीन प्रमुख है। इन देशों की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन केवल अस्थायी समाधान हो सकता है, जबकि उनके सामने आर्थिक और सामाजिक समस्याएं बनी हुई हैं।