ट्रंप प्रशासन की नई वीज़ा नीति: स्वास्थ्य के आधार पर आव्रजन में बदलाव
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने नई वीज़ा नीति लागू की है, जिसमें विदेशी नागरिकों की स्वास्थ्य स्थितियों को वीज़ा आवेदनों पर प्रभाव डालने वाला कारक बनाया गया है। इस नीति के तहत, गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं वाले व्यक्तियों को वीज़ा के लिए अयोग्य माना जा सकता है, जिससे मानवाधिकारों और समानता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं। जानें इस नीति के पीछे के तर्क और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
Nov 8, 2025, 14:47 IST
अमेरिका की नई आव्रजन नीति
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में प्रशासन ने एक बार फिर से आव्रजन नीतियों में विवादास्पद बदलाव किया है। अब विश्वभर में स्थित अमेरिकी दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को निर्देश दिया गया है कि वे उन विदेशी नागरिकों को वीज़ा देने से मना करें जिनकी गंभीर या दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ हैं। यह निर्णय अमेरिकी आव्रजन प्रणाली में "स्वास्थ्य" को एक महत्वपूर्ण कारक बनाने की दिशा में उठाया गया एक कदम है, जिसने मानवाधिकारों, समानता और वैश्विक गतिशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
नई वीज़ा नीति का प्रभाव
ट्रंप प्रशासन की नई वीज़ा नीति के अनुसार, जिन विदेशी नागरिकों को अमेरिका में प्रवेश या स्थायी निवास की आवश्यकता है, उनके स्वास्थ्य की स्थिति अब उनके आवेदन के परिणाम को सीधे प्रभावित करेगी। KFF Health News की रिपोर्ट के अनुसार, प्रशासन ने यह निर्देश दिया है कि ऐसे व्यक्तियों को "वीज़ा के लिए अयोग्य" माना जाए जिनकी बीमारियाँ सार्वजनिक संसाधनों पर बोझ बन सकती हैं।
बीमारियों की सूची
नीति में जिन बीमारियों का उल्लेख किया गया है, उनमें हृदय रोग, श्वसन संबंधी रोग, कैंसर, मधुमेह, मेटाबॉलिक बीमारियाँ, तंत्रिका संबंधी रोग, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ और मोटापा शामिल हैं। निर्देश में कहा गया है कि इन बीमारियों के इलाज पर "लाखों डॉलर तक खर्च" हो सकते हैं, इसलिए इन्हें "संभावित सार्वजनिक भार" की श्रेणी में रखा जाए। इसके अलावा, वीज़ा अधिकारी आवेदक की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन करेंगे कि क्या वह बिना अमेरिकी सरकार की सहायता के अपने उपचार का खर्च उठा सकता है।
अमेरिका फर्स्ट नीति का प्रभाव
यह नया दिशा-निर्देश ट्रंप प्रशासन की "अमेरिका फर्स्ट" नीति के अनुरूप है, जिसमें आव्रजन को सीमित करने और विदेशी नागरिकों की सामाजिक कल्याण योजनाओं पर निर्भरता को रोकने का प्रयास किया गया है। प्रशासन का तर्क है कि अमेरिकी करदाताओं के धन का लाभ केवल अमेरिकी नागरिकों को मिलना चाहिए और विदेशी आवेदकों को यह साबित करना होगा कि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं।
मानवाधिकारों पर प्रभाव
हालांकि, यह तर्क "सामाजिक जिम्मेदारी" और "मानवीय सहानुभूति" की वैश्विक अवधारणा के विपरीत है। स्वास्थ्य स्थिति जैसी अनियंत्रित या प्राकृतिक परिस्थिति को किसी व्यक्ति के वीज़ा निर्धारण का आधार बनाना न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि यह संयुक्त राष्ट्र के Universal Declaration of Human Rights में निहित "समान अवसर" के सिद्धांत को भी चुनौती देता है।
आव्रजन प्रणाली में बदलाव
स्वास्थ्य आधारित वीज़ा मूल्यांकन की प्रक्रिया कोई नई नहीं है, किंतु अब यह केवल एक चिकित्सीय जाँच से आगे बढ़कर "सामाजिक और आर्थिक दंड" का रूप ले रही है। यह नीति न केवल शारीरिक रूप से अस्वस्थ लोगों को बाहर करती है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे लोगों को भी अप्रत्यक्ष रूप से "सामाजिक बोझ" के रूप में चित्रित करती है।
आर्थिक योग्यता आधारित चयन प्रणाली
यह स्वास्थ्य-आधारित नीति अमेरिका की आव्रजन प्रणाली को एक प्रकार से “आर्थिक योग्यता आधारित चयन प्रणाली” में बदल देती है, जिसमें केवल युवा, स्वस्थ और संपन्न व्यक्तियों को ही "स्वागत योग्य" माना जा सकता है।
अमेरिका की नैतिक दिशा
यह नीति न केवल एक प्रशासनिक निर्णय है, बल्कि यह अमेरिका की नैतिक दिशा का भी दर्पण है। जिस राष्ट्र ने शताब्दियों तक स्वयं को “अवसरों की भूमि” के रूप में प्रस्तुत किया, वही अब धीरे-धीरे "सुविधाओं की भूमि" तक सीमित होता जा रहा है। यदि स्वास्थ्य और उम्र को वीज़ा अयोग्यता का आधार बनाया जाएगा, तो यह न केवल भेदभावपूर्ण होगा बल्कि यह वैश्विक स्तर पर अन्य देशों को भी इसी प्रकार की विभेदक नीतियाँ अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है।
निष्कर्ष
ट्रंप प्रशासन की यह स्वास्थ्य-आधारित वीज़ा नीति आर्थिक आत्मनिर्भरता के तर्क से शुरू होकर मानवाधिकारों की उपेक्षा तक पहुँचती है। यह नीति एक ऐसे अमेरिका की झलक देती है जो अपनी सीमाओं को केवल भूगोल के आधार पर नहीं, बल्कि शारीरिक और आर्थिक क्षमताओं के आधार पर परिभाषित करना चाहता है। इसलिए यह निर्णय केवल आव्रजन नियंत्रण का नहीं, बल्कि उस मानवीय मूल्यों की परीक्षा का प्रश्न है जिन पर आधुनिक लोकतंत्र खड़ा है।