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डॉ. मोहन भागवत का भारत की एकता पर जोर, आध्यात्मिक दृष्टि की आवश्यकता

डॉ. मोहन भागवत ने सतना में एक कार्यक्रम में भारत की एकता पर जोर देते हुए कहा कि इसे आध्यात्मिक दृष्टि से देखना चाहिए। उन्होंने विभाजन के बाद की पीड़ा का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें अपने हक को वापस लाना है। भागवत ने सभी नागरिकों से कम से कम तीन भाषाएं सीखने की अपील की और कहा कि हम सब एक हैं। उनके विचारों ने उपस्थित जनसमूह में ऊर्जा भर दी और एकता का संदेश दिया।
 

भारत की एकता का आध्यात्मिक दृष्टिकोण

सतना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि भारत की एकता को भाषा, धर्म या क्षेत्रीय पहचान से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से देखना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमें एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो हमें एकता की ओर ले जाए। उन्होंने यह भी कहा कि जो हम अपने घर से बाहर आए हैं, एक दिन हमें उसे पुनः प्राप्त करना है। जो हमारा है, उसे हम वापस लेंगे।

भागवत ने कहा कि विभाजन के बाद सिंधी समुदाय पाकिस्तान नहीं गए, बल्कि वे अविभाजित भारत के प्रतीक हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि जो हम घर छोड़कर आए हैं, उसे एक दिन वापस लाना है। भाषाओं के संदर्भ में उन्होंने कहा कि सभी भाषाएं भारत की राष्ट्र भाषा हैं और हर नागरिक को कम से कम तीन भाषाएं सीखनी चाहिए। उन्होंने एकता पर बल देते हुए कहा कि हम सभी एक हैं, सभी सनातनी और हिंदू हैं।

डॉ. भागवत ने बाबा सिंधी कैंप में मेहर शाह दरबार के नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि भारत की विविधता उसकी सबसे बड़ी ताकत है। एक अंग्रेज ने हमें टूटा हुआ दर्पण दिखाकर अलग कर दिया, लेकिन अब हमें एकता के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा। जब हम आध्यात्मिक परंपरा के दर्पण में देखेंगे, तो हम पाएंगे कि हम सब एक हैं।

यह अवसर धार्मिक था, लेकिन इसका भाव सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया। डॉ. भागवत के प्रेरणादायक शब्दों ने उपस्थित जनसमूह में ऊर्जा भर दी, जिसने सबको अपने सनातन स्वरूप की याद दिलाई।

हम सब सनातनी, हमें अंग्रेजों ने तोड़ा

अपने संबोधन में डॉ. भागवत ने कहा कि हमें अपने भीतर झांकना चाहिए और अपने अहंकार को त्यागना चाहिए। “जब हम स्वयं को पहचानेंगे, तभी समाज में परिवर्तन आएगा,” उन्होंने कहा। भारत में अनेक भाषाएं हैं, लेकिन भाव एक ही है, मातृभूमि के प्रति प्रेम और एकता की भावना। उन्होंने बंटवारे की ऐतिहासिक पीड़ा का उल्लेख करते हुए कहा कि 1947 के विभाजन में जो सिंधी भाई पाकिस्तान नहीं गए, वे वास्तव में अविभाजित भारत के प्रतीक हैं।

दुनिया हमें हिंदू ही कहती है, पहचान छिपाने से नहीं मिटती जड़ें

डॉ. भागवत ने कहा कि कुछ लोग खुद को हिंदू नहीं मानते, लेकिन पूरी दुनिया उन्हें उसी रूप में देखती है। यह उनकी पहचान है, जो उनकी जन्मभूमि, संस्कृति और जीवन दृष्टि से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि यह भारत की सांस्कृतिक निरंतरता का प्रतीक है।

इच्छा पूर्ति के लिए धर्म न छोड़ो

इस दौरान डॉ. भागवत ने समाज को एक गहरी आध्यात्मिक सीख भी दी। उन्होंने कहा कि अपने अहंकार को छोड़कर स्व को देखो। जब हम धर्म को अपने जीवन में अपनाते हैं, तभी समाज में सामंजस्य और प्रगति आती है।

अंग्रेजों की चालाकी, भारत की भूल

डॉ. भागवत ने अंग्रेजी हुकूमत की नीति पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने हमें मानसिक रूप से पराजित किया और हमारी आध्यात्मिक चेतना को छीन लिया। अब समय है कि हम इस टूटी हुई छवि को छोड़कर सच्चे भारत का चेहरा देखें।

नागपुर से सतना तक एक ही स्वर, एक ही संकल्प

डॉ. भागवत का यह संदेश नया नहीं है, बल्कि निरंतरता का प्रतीक है। उन्होंने हाल ही में नागपुर में भी यही विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने कहा कि “भारत को फिर से अपने आत्मस्वरूप में खड़ा करने का समय आ गया है।”